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पाता॑ वृत्र॒हा सु॒तमा घा॑ गम॒न्नारे अ॒स्मत् । नि य॑मते श॒तमू॑तिः ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

pātā vṛtrahā sutam ā ghā gaman nāre asmat | ni yamate śatamūtiḥ ||

पद पाठ

पाता॑ । वृ॒त्र॒ऽहा । सु॒तम् । आ । घ॒ । ग॒म॒त् । न । आ॒रे । अ॒स्मत् । नि । य॒म॒ते॒ । श॒तम्ऽऊ॑तिः ॥ ८.२.२६

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:2» मन्त्र:26 | अष्टक:5» अध्याय:7» वर्ग:22» मन्त्र:1 | मण्डल:8» अनुवाक:1» मन्त्र:26


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शिव शंकर शर्मा

दुष्टों का वह विनाशक भी है, यह जान उसकी उपासना करे, यह इससे शिक्षा देते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - (पाता) वह सर्वपालक (वृत्रहा) अज्ञान अप्रकाश अन्धकार आदि अनिष्ट वस्तुओं का सर्वथा विनष्ट करनेवाला तथा (शतमूतिः) अनन्त रक्षक और सहायक परमात्मा (अस्मत्+आरे) हमारे निकट (सुतम्) निवेदित पदार्थ की रक्षा के लिये (आगमत्+घ) अवश्य आवे। और (न+अस्मत्+आरे) हमसे दूर न जाय ॥२६॥
भावार्थभाषाः - परमात्मा ही सर्वविघ्ननिवारक और सर्वपालक है। उसकी आज्ञापालन करते हुए मनुष्य इस प्रकार निर्वाह करें, जिससे सदाचारनिरत उन्हें देख प्रसन्न हो और आपदों से बचावे ॥२६॥
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (सुतं) संस्कृत पदार्थ का (पाता) पान करनेवाला (वृत्रहा) शत्रुहन्ता कर्मयोगी (अस्मत्, आरे) हमसे दूर (न) न हो (आगमत्, घ) समीप में ही आवे (शतमूतिः) अनेकविध रक्षा करनेवाला कर्मयोगी ही (नियमते) शासन करता है ॥२६॥
भावार्थभाषाः - जिज्ञासुजन प्रार्थना करते हैं कि हे भगवन् ! आप हमारे समीप आवें अर्थात् विद्या, शिक्षा तथा अनेकविध उपायों से हमारी रक्षा करें, क्योंकि रक्षा करनेवाला कर्मयोगी ही शासक होता है, अरक्षक नहीं ॥२६॥
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शिव शंकर शर्मा

विनाशकत्वेन तमेवोपासीतेत्यनया शिक्षते।

पदार्थान्वयभाषाः - पाता=पालकः। वृत्रहा=वृत्राणि अज्ञानानि अन्धकारांश्च हन्तीति वृत्रहा। पुनः। शतमूतिः=शतमनन्ता ऊतयो रक्षा यस्य स शतमूतिः निखिलरक्षक इन्द्रः। अस्मत्+आरे=अस्माकं समीपे। सुतम्=अभिसुतं मनसा समर्पितं वस्तु आलक्ष्य। आगमत्=अवश्यमागच्छतु। घ=अवधारणे आगत्य च। अस्मान् शुभकर्मणि नियमते=नितरां नियच्छतु=नियोजयतु ॥२६॥
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (सुतं) संस्कृतं पदार्थं (पाता) पाता पानशीलः (वृत्रहा) शत्रुहन्ता कर्मयोगी (अस्मत्, आरे) अस्मत्तो दूरं (न) न भवतु (आगमत्, घ) आगच्छत्वेव (शतमूतिः) अनेकविधरक्षावान् कर्मयोगी हि (नियमते) शासनं करोति ॥२६॥