क ईं॒ व्य॑क्ता॒ नरः॒ सनी॑ळा रु॒द्रस्य॒ मर्या॒ अधा॒ स्वश्वाः॑ ॥१॥
ka īṁ vyaktā naraḥ sanīḻā rudrasya maryā adha svaśvāḥ ||
के। ई॒म्। विऽअ॑क्ताः। नरः॑। सऽनी॑ळाः। रु॒द्रस्य॑। मर्याः॑। अध॑। सु॒ऽअश्वाः॑ ॥१॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
अब पच्चीस ऋचावाले छप्पनवें सूक्त का आरम्भ है, उसके प्रथम मन्त्र में अब कौन मनुष्य श्रेष्ठ होते हैं, इस विषय को कहते हैं ॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
अथ के मनुष्याः श्रेष्ठा भवन्तीत्याह ॥
हे विद्वन्नध क ईं रुद्रस्य स्वश्वा व्यक्ताः सनीळा मर्या नरस्सन्तीति ब्रूहि ॥१॥
माता सविता जोशी
(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)या सूक्तात वायू, विद्वान, राजा, शूरवीर, अध्यापक, उपदेशक व रक्षक यांच्या गुणांचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची पूर्व सूक्तार्थाबरोबर संगती जाणावी.