त्मना॑ स॒मत्सु॑ हि॒नोत॑ य॒ज्ञं दधा॑त के॒तुं जना॑य वी॒रम् ॥६॥
tmanā samatsu hinota yajñaṁ dadhāta ketuṁ janāya vīram ||
त्मना॑। स॒मत्ऽसु॑। हि॒नोत॑। य॒ज्ञम्। दधा॑त। के॒तुम्। जना॑य। वी॒रम् ॥६॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
फिर कन्या विद्याप्राप्ति व्यवहार को बढ़ावें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
पुनः कन्या विद्याप्राप्तिव्यवहारं वर्धयन्त्वित्याह ॥
हे कन्या ! यथा जनाय समत्सु वीरं प्रेरयन्ति तथा त्मना केतुं दधात यज्ञं हिनोत ॥६॥