मा नो॑ अग्ने॒ऽवीर॑ते॒ परा॑ दा दु॒र्वास॒सेऽम॑तये॒ मा नो॑ अ॒स्यै। मा नः॑ क्षु॒धे मा र॒क्षस॑ ऋतावो॒ मा नो॒ दमे॒ मा वन॒ आ जु॑हूर्थाः ॥१९॥
mā no agne vīrate parā dā durvāsase mataye mā no asyai | mā naḥ kṣudhe mā rakṣasa ṛtāvo mā no dame mā vana ā juhūrthāḥ ||
मा। नः॒। अ॒ग्ने॒। अ॒वीर॑ते। परा॑। दा। दुः॒ऽवास॑से। अम॑तये। मा। नः॒। अ॒स्यै। मा। नः॒। क्षु॒धे। मा। र॒क्षसे॑। ऋ॒त॒ऽवः॒। मा। नः॒। दमे॑। मा। वने॑। आ। जु॒हू॒र्थाः॒ ॥१९॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
फिर विद्वान् लोग क्या करें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
पुनर्विद्वांसः किं कुर्युरित्याह ॥
हे अग्ने ! त्वमवीरते नो मा परा दाः। दुर्वाससेऽमतये नो मा परा दाः नोऽस्यै मा क्षुधे मा नियुङ्क्ष्व। हे ऋतावो ! रक्षसे दमे नो मा पीड वने नो मा आ जुहूर्थाः ॥१९॥