तद्वो॑ गाय सु॒ते सचा॑ पुरुहू॒ताय॒ सत्व॑ने। शं यद्गवे॒ न शा॒किने॑ ॥२२॥
tad vo gāya sute sacā puruhūtāya satvane | śaṁ yad gave na śākine ||
तत्। वः॒। गा॒य॒। सु॒ते। सचा॑। पु॒रु॒ऽहू॒ताय॑। सत्व॑ने। शम्। यत्। गवे॑। न। शा॒किने॑ ॥२२॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
फिर मनुष्य किसके लिये क्या करें, इस विषय को कहते हैं ॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
पुनर्मनुष्याः कस्मै किं कुर्य्युरित्याह ॥
हे मनुष्या ! यद्वः प्रशंसन्ति तच्छाकिने गवे न सुते सचा पुरुहूताय सत्वने स्युस्तान् हे इन्द्र ! त्वं शं गाय ॥२२॥