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तद्वो॑ गाय सु॒ते सचा॑ पुरुहू॒ताय॒ सत्व॑ने। शं यद्गवे॒ न शा॒किने॑ ॥२२॥

English Transliteration

tad vo gāya sute sacā puruhūtāya satvane | śaṁ yad gave na śākine ||

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Pad Path

तत्। वः॒। गा॒य॒। सु॒ते। सचा॑। पु॒रु॒ऽहू॒ताय॑। सत्व॑ने। शम्। यत्। गवे॑। न। शा॒किने॑ ॥२२॥

Rigveda » Mandal:6» Sukta:45» Mantra:22 | Ashtak:4» Adhyay:7» Varga:25» Mantra:2 | Mandal:6» Anuvak:4» Mantra:22


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर मनुष्य किसके लिये क्या करें, इस विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! (यत्) जो (वः) आप लोगों के लिये प्रशंसा करते हैं (तत्) वे (शाकिने) सामर्थ्ययुक्त (गवे) स्तुति करनेवाले के लिये (न) जैसे वैसे (सुते) उत्पन्न हुए इस संसार में (सचा) संयुक्त सत्य से (पुरुहूताय) बहुतों से प्रशंसित (सत्वने) शुद्ध अन्तःकरणवाले के लिये हों, उनकी हे (इन्द्र) ऐश्वर्य्य से युक्त ! आप (शम्) सुखपूर्वक (गाय) स्तुति कीजिये ॥२२॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जैसे सम्पूर्ण विद्याओं के पार जानेवाले के अध्यापन और उपदेशरूप कर्म्म से सब का मङ्गल बढ़ता है, वैसे ही उत्तम राजा से प्रजा का सुख उन्नत होता है ॥२२॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनर्मनुष्याः कस्मै किं कुर्य्युरित्याह ॥

Anvay:

हे मनुष्या ! यद्वः प्रशंसन्ति तच्छाकिने गवे न सुते सचा पुरुहूताय सत्वने स्युस्तान् हे इन्द्र ! त्वं शं गाय ॥२२॥

Word-Meaning: - (तत्) ते (वः) युष्मभ्यम् (गाय) स्तुहि (सुते) उत्पन्नेऽस्मिञ्जगति (सचा) समवेतेन सत्येन (पुरुहूताय) बहुभिः प्रशंसिताय (सत्वने) शुद्धान्तःकरणाय (शम्) (यत्) ये (गवे) स्तावकाय (न) इव (शाकिने) शक्तिमते ॥२२॥
Connotation: - अत्रोपमालङ्कारः। यथा सर्वविद्यापारगस्याऽध्यापनोपदेशेन कर्मणा सर्वेषां मङ्गलं वर्धते तथैवोत्तमेन राज्ञा प्रजासुखमुन्नतं भवति ॥२२॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात उपमालंकार आहे. जसे संपूर्ण विद्येत पारंगत असलेल्या लोकांच्या अध्यापन व उपदेशरूपी कर्माने सर्वांचे मंगल होते. तसेच उत्तम राजामुळे प्रजेचे सुख वाढते. ॥ २२ ॥