स नो॑ नि॒युद्भि॒रा पृ॑ण॒ कामं॒ वाजे॑भिर॒श्विभिः॑। गोम॑द्भिर्गोपते धृ॒षत् ॥२१॥
sa no niyudbhir ā pṛṇa kāmaṁ vājebhir aśvibhiḥ | gomadbhir gopate dhṛṣat ||
सः। नः॒। नि॒युत्ऽभिः॑। आ। पृ॒ण॒। काम॑म्। वाजे॑ऽभिः। अ॒श्विऽभिः॑। गोम॑त्ऽभिः। गो॒ऽप॒ते॒। धृ॒षत् ॥२१॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
फिर राजा और प्रजाजन परस्पर किसकी शोभा करें, इस विषय को कहते हैं ॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
पुना राजप्रजाजना परस्परं किमलङ्कुर्य्युरित्याह ॥
हे गोपते ! स धृषत्त्वं वाजेभिर्नियुद्भिर्गोमद्भिरश्विभिर्नः काममा पृण ॥२१॥