तमु॑ त्वा पा॒थ्यो वृषा॒ समी॑धे दस्यु॒हन्त॑मम्। ध॒नं॒ज॒यं रणे॑रणे ॥१५॥
tam u tvā pāthyo vṛṣā sam īdhe dasyuhantamam | dhanaṁjayaṁ raṇe-raṇe ||
तम्। ऊँ॒ इति॑। त्वा॒। पा॒थ्यः। वृषा॑। सम्। ई॒धे॒। द॒स्यु॒हन्ऽत॑मम्। ध॒न॒म्ऽज॒यम्। रणे॑ऽरणे ॥१५॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
फिर मनुष्यों को क्या करना चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
पुनर्मनुष्यैः किं कर्त्तव्यमित्याह ॥
हे मनुष्या ! यथा पाथ्यो वृषा दस्युहन्तमं रणेरणे धनञ्जयं तं त्वा समीधे तथा त्वं मामु समीधय ॥१५॥