अ॒भ्य॑व॒स्थाः प्र जा॑यन्ते॒ प्र व॒व्रेर्व॒व्रिश्चि॑केत। उ॒पस्थे॑ मा॒तुर्वि च॑ष्टे ॥१॥
abhy avasthāḥ pra jāyante pra vavrer vavriś ciketa | upasthe mātur vi caṣṭe ||
अ॒भि। अ॒व॒ऽस्थाः। प्र। जा॒य॒न्ते॒। प्र। व॒व्रेः। व॒व्रिः। चि॒के॒त॒। उ॒पऽस्थे॑। मा॒तुः। वि। च॒ष्टे॒ ॥१॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
अब पाँच ऋचावाले उन्नीसवें सूक्त का आरम्भ है, उसके प्रथम मन्त्र में विद्वानों के सिद्ध करने योग्य उपदेश विषय को कहते हैं ॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
अथ विद्वत्साध्योपदेशविषयमाह ॥
हे विद्वन् ! वव्रेर्या अवस्थाः प्र जायन्ते ता वव्रिरभि प्र चिकेत मातुरुपस्थे वि चष्ट एता त्वमपि जानीहि ॥१॥
माता सविता जोशी
(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)या सूक्तात विद्वानांनी सिद्ध करण्यायोग्य उपदेशाचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची पूर्व सूक्तार्थाबरोबर संगती जाणावी.