यु॒वामिद्ध्यव॑से पू॒र्व्याय॒ परि॒ प्रभू॑ती ग॒विषः॑ स्वापी। वृ॒णी॒महे॑ स॒ख्याय॑ प्रि॒याय॒ शूरा॒ मंहि॑ष्ठा पि॒तरे॑व शं॒भू ॥७॥
yuvām id dhy avase pūrvyāya pari prabhūtī gaviṣaḥ svāpī | vṛṇīmahe sakhyāya priyāya śūrā maṁhiṣṭhā pitareva śambhū ||
यु॒वाम्। इत्। हि। अव॑से। पू॒र्व्याय॑। परि॑। प्रभू॑ती॒ इति॒ प्रऽभू॑ती। गो॒ऽइषः॑। स्वा॒पी॒ इति॑ सुऽआपी। वृ॒णी॒महे॑। स॒ख्याय॑। प्रि॒याय॑। शूरा॑। मंहि॑ष्ठा। पि॒तरा॑ऽइव। श॒म्भू इति॑ श॒म्ऽभू ॥७॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
अब प्रजा विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
अथ प्रजाविषयमाह ॥
हे राजाऽमात्यौ ! युवां हि पूर्व्यायावसे इत्प्रभूती स्वापी शूरा मंहिष्ठा पितरेव शम्भू प्रियाय सख्याय गविषो वयं परि वृणीमहे तस्माद्युवामस्माकं पालकौ सततं भवेतम् ॥७॥