पु॒रो॒ळाशं॑ च नो॒ घसो॑ जो॒षया॑से॒ गिर॑श्च नः। व॒धू॒युरि॑व॒ योष॑णाम् ॥१६॥
puroḻāśaṁ ca no ghaso joṣayāse giraś ca naḥ | vadhūyur iva yoṣaṇām ||
पु॒रो॒ळाश॑म्। च॒। नः॒। घसः॑। जो॒षया॑से। गिरः॑। च॒। नः॒। व॒धू॒युःऽइ॑व। योष॑णाम् ॥१६॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
पुनस्तमेव विषयमाह ॥
हे वैद्यराज ! यो नो घसोऽस्ति तं पुरोळाशं च जोषयासे योषणां वधूयुरिव नो गिरश्च जोषयासे ॥१६॥