उ॒त स्मा॑ स॒द्य इत्परि॑ शशमा॒नाय॑ सुन्व॒ते। पु॒रू चि॑न्मंहसे॒ वसु॑ ॥८॥
uta smā sadya it pari śaśamānāya sunvate | purū cin maṁhase vasu ||
उ॒त। स्म॒। स॒द्यः। इत्। परि। श॒श॒मा॒नाय॑। सु॒न्व॒ते। पु॒रु। चि॒त्। मं॒ह॒से॒। वसु॑ ॥८॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
फिर न्यायपालन राजप्रजाधर्मविषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
पुनर्न्यायपालनराजप्रजाधर्मविषयमाह ॥
हे विद्वन् ! यतस्त्वं शशमानाय सुन्वते चित् पुरू वसु परि मंहसे तस्मात्त्वं सद्य उत स्मेदैश्वर्य्यं प्राप्नोति ॥८॥