को अ॒द्य नर्यो॑ दे॒वका॑म उ॒शन्निन्द्र॑स्य स॒ख्यं जु॑जोष। को वा॑ म॒हेऽव॑से॒ पार्या॑य॒ समि॑द्धे अ॒ग्नौ सु॒तसो॑म ईट्टे ॥१॥
ko adya naryo devakāma uśann indrasya sakhyaṁ jujoṣa | ko vā mahe vase pāryāya samiddhe agnau sutasoma īṭṭe ||
कः। अ॒द्य। नर्यः॑। दे॒वऽका॑मः। उ॒शन्। इन्द्र॑स्य। स॒ख्यम्। जु॒जो॒ष॒। कः। वा॒। म॒हे। अव॑से। पार्या॑य। सम्ऽइ॑द्धे। अ॒ग्नौ। सु॒तऽसो॑मः। ई॒ट्टे॒ ॥१॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
अब आठ ऋचावाले पच्चीसवें सूक्त का आरम्भ है, उसके प्रथम मन्त्र में प्रश्नोत्तरविषय का आरम्भ किया जाता है ॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
अथ प्रश्नोत्तरविषय आरभ्यते ॥
हे विद्वन्नद्य को देवकाम इन्द्रस्य सख्यमुशन्नर्य्यो धर्म्मं जुजोष को वा महे पार्य्यायावसे समिद्ध अग्नौ सुतसोमः सन्नैश्वर्य्यमीट्टे इति वयं पृच्छामः ॥१॥
माता सविता जोशी
(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)या सूक्तात प्रश्नोत्तर, राजा, उत्तम, मध्यम, निकृष्ट माणसांच्या गुणांचे वर्णन, राजाच्या मंत्र्याचे पक्षपातरहित आचरण उपदेश असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची पूर्व सूक्तार्थाबरोबर संगती जाणावी.