Go To Mantra

को अ॒द्य नर्यो॑ दे॒वका॑म उ॒शन्निन्द्र॑स्य स॒ख्यं जु॑जोष। को वा॑ म॒हेऽव॑से॒ पार्या॑य॒ समि॑द्धे अ॒ग्नौ सु॒तसो॑म ईट्टे ॥१॥

English Transliteration

ko adya naryo devakāma uśann indrasya sakhyaṁ jujoṣa | ko vā mahe vase pāryāya samiddhe agnau sutasoma īṭṭe ||

Mantra Audio
Pad Path

कः। अ॒द्य। नर्यः॑। दे॒वऽका॑मः। उ॒शन्। इन्द्र॑स्य। स॒ख्यम्। जु॒जो॒ष॒। कः। वा॒। म॒हे। अव॑से। पार्या॑य। सम्ऽइ॑द्धे। अ॒ग्नौ। सु॒तऽसो॑मः। ई॒ट्टे॒ ॥१॥

Rigveda » Mandal:4» Sukta:25» Mantra:1 | Ashtak:3» Adhyay:6» Varga:13» Mantra:1 | Mandal:4» Anuvak:3» Mantra:1


Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब आठ ऋचावाले पच्चीसवें सूक्त का आरम्भ है, उसके प्रथम मन्त्र में प्रश्नोत्तरविषय का आरम्भ किया जाता है ॥

Word-Meaning: - हे विद्वन् ! (अद्य) इस समय (कः) कौन (देवकामः) विद्वानों की कामना करनेवाला (इन्द्रस्य) अत्यन्त ऐश्वर्य्य से युक्त के (सख्यम्) मित्रत्व की (उशन्) कामना करता हुआ (नर्य्यः) मनुष्यों में श्रेष्ठ धर्म्म का (जुजोष) सेवन करता है (कः, वा) अथवा कौन (महे) बड़े (पार्य्याय) दुःख के पार उतारनेवाले (अवसे) रक्षण आदि के लिये (समिद्धे) प्रसिद्ध (अग्नौ) अग्नि में (सुतसोमः) सोमरस को उत्पन्न करनेवाला हुआ ऐश्वर्य्य को (ईट्टे) प्राप्त होता है, यह हम लोग पूछते हैं ॥१॥
Connotation: - जो विद्या और मित्रता की कामना करनेवाला, सम्पूर्ण जगत् का प्रिय आचरण करता और सब का रक्षण करता हुआ अग्नि में होम आदि से प्रजा का हित करे, वही जगत् का हित चाहनेवाला है, यह उत्तर है ॥१॥
Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ प्रश्नोत्तरविषय आरभ्यते ॥

Anvay:

हे विद्वन्नद्य को देवकाम इन्द्रस्य सख्यमुशन्नर्य्यो धर्म्मं जुजोष को वा महे पार्य्यायावसे समिद्ध अग्नौ सुतसोमः सन्नैश्वर्य्यमीट्टे इति वयं पृच्छामः ॥१॥

Word-Meaning: - (कः) (अद्य) इदानीम् (नर्य्यः) नृषु साधुः (देवकामः) यो देवान् विदुषः कामयते (उशन्) कामयमानः (इन्द्रस्य) परमैश्वर्य्ययुक्तस्य (सख्यम्) मित्रत्वम् (जुजोष) सेवते (कः) (वा) विकल्पे (महे) महते (अवसे) रक्षणाद्याय (पार्य्याय) दुःखपारं गमयते (समिद्धे) प्रसिद्धे (अग्नौ) पावके (सुतसोमः) सुतः सोमो येन (ईट्टे) ऐश्वर्य्यं लभते ॥१॥
Connotation: - यो विद्यामित्रत्वकामस्सर्वजगत्प्रियाचारी सर्वेषां रक्षणं कुर्वन्नग्नौ होमादिना प्रजाहितं कुर्य्यात् स एव जगद्धितैषी वर्त्तत इत्युत्तरम् ॥१॥
Reads times

MATA SAVITA JOSHI

या सूक्तात प्रश्नोत्तर, राजा, उत्तम, मध्यम, निकृष्ट माणसांच्या गुणांचे वर्णन, राजाच्या मंत्र्याचे पक्षपातरहित आचरण उपदेश असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची पूर्व सूक्तार्थाबरोबर संगती जाणावी.

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - जो (कोणी) विद्या व मैत्रीची कामना करणारा, संपूर्ण जगाला प्रिय वाटेल असे आचरण करणारा, सर्वांचे रक्षण करणारा, अग्नीचा होम इत्यादी करून प्रजेचे हित साधणारा असतो तोच जगाचे हित साधणारा असतो. ॥ १ ॥