सोमो॑ अ॒स्मभ्यं॑ द्वि॒पदे॒ चतु॑ष्पदे च प॒शवे॑। अ॒न॒मी॒वा इष॑स्करत्॥
somo asmabhyaṁ dvipade catuṣpade ca paśave | anamīvā iṣas karat ||
सोमः॑। अ॒स्मभ्य॑म्। द्वि॒ऽपदे॑। चतुः॑ऽपदे। च॒। प॒शवे॑। अ॒न॒मी॒वाः। इषः॑। क॒र॒त्॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
अब इस अगले मन्त्र में विद्वान् के विषय को कहते हैं।
स्वामी दयानन्द सरस्वती
विद्वद्विषयमाह।
हे मनुष्या यस्सोमो द्विपदेऽस्मभ्यं चतुष्पदे गवे च पशवेऽनमीवा इषस्करत्तं सर्वदा सत्कुरुत ॥१४॥