स वि॒द्वाँ आ च॑ पिप्रयो॒ यक्षि॑ चिकित्व आनु॒षक्। आ चा॒स्मिन्त्स॑त्सि ब॒र्हिषि॑॥
sa vidvām̐ ā ca piprayo yakṣi cikitva ānuṣak | ā cāsmin satsi barhiṣi ||
सः। वि॒द्वान्। आ। च॒। पि॒प्र॒यः॒। यक्षि॑। चि॒कि॒त्वः॒। आ॒नु॒षक्। आ। च॒। अ॒स्मिन्। स॒त्सि॒। ब॒र्हिषि॑॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।
स्वामी दयानन्द सरस्वती
पुनस्तमेव विषयमाह।
हे चिकित्व ईश्वर स विद्वाँस्त्वमस्मिन्बर्हिष्या सत्सि स त्वमानुषक् पिप्रयश्च यक्षि ॥८॥