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स वि॒द्वाँ आ च॑ पिप्रयो॒ यक्षि॑ चिकित्व आनु॒षक्। आ चा॒स्मिन्त्स॑त्सि ब॒र्हिषि॑॥

English Transliteration

sa vidvām̐ ā ca piprayo yakṣi cikitva ānuṣak | ā cāsmin satsi barhiṣi ||

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Pad Path

सः। वि॒द्वान्। आ। च॒। पि॒प्र॒यः॒। यक्षि॑। चि॒कि॒त्वः॒। आ॒नु॒षक्। आ। च॒। अ॒स्मिन्। स॒त्सि॒। ब॒र्हिषि॑॥

Rigveda » Mandal:2» Sukta:6» Mantra:8 | Ashtak:2» Adhyay:5» Varga:27» Mantra:8 | Mandal:2» Anuvak:1» Mantra:8


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

Word-Meaning: - हे (चिकित्वः) विज्ञानवान् ईश्वर (सः) वह (विद्वान्) विद्वान् ! आप (अस्मिन्) इस (बर्हिषि) अन्तरिक्ष जगत् में (आसत्सि) आसन्न हो रहे हो प्राप्त हो रहे हो सो आप (आनुषक्) अनुकूल जैसे हो वैसे (आ, पिप्रयः) अच्छे प्रसन्न करते (च) और (यक्षि, च) अच्छे प्रकार सब वस्तु देते हो ॥८॥
Connotation: - हे मनुष्यो! आप लोग जो इस जगत् में व्याप्त, प्रिय पदार्थ का देनेवाला और सर्वज्ञ अन्तर्यामी ईश्वर है, उसी की उपासना करें ॥८॥ इस सूक्त में वह्नि और ईश्वर के गुणों का वर्णन होने से इस सूक्त के अर्थ की पिछले सूक्तार्थ के साथ सङ्गति है, यह जानना चाहिये ॥ यह छठा सूक्त और सत्ताईसवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह।

Anvay:

हे चिकित्व ईश्वर स विद्वाँस्त्वमस्मिन्बर्हिष्या सत्सि स त्वमानुषक् पिप्रयश्च यक्षि ॥८॥

Word-Meaning: - (सः) जगदीश्वरः (विद्वान्) सर्वविद्याधारः (आ) (च) (पिप्रयः) प्रीणासि (यक्षि) ददासि (चिकित्वः) विज्ञानवन् (आनुषक्) अनुकूलम् (आ) (च) (अस्मिन्) (सत्सि) आसन्नोऽसि (बर्हिषि) अन्तरिक्षस्थे जगति ॥८॥
Connotation: - हे मनुष्या भवन्तो योऽस्मिञ्जगति व्याप्तः प्रियस्य दाता सर्वज्ञोऽन्तर्यामीश्वरोऽस्ति तमुपासीरन्निति ॥८॥। अस्मिन् सूक्ते वह्निविद्वदीश्वगुणवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिरस्तीति वेदितव्यम् ॥ इति षष्ठं सूक्तं सप्तविंशो वर्गश्च समाप्तः ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - हे माणसांनो! या जगात व्याप्त, प्रिय पदार्थ देणारा, सर्वज्ञ, अंतर्यामी ईश्वर आहे, त्याचीच तुम्ही उपासना करा. ॥ ८ ॥