होता॑जनिष्ट॒ चेत॑नः पि॒ता पि॒तृभ्य॑ ऊ॒तये॑। प्र॒यक्ष॒ञ्जेन्यं॒ वसु॑ श॒केम॑ वा॒जिनो॒ यम॑म्॥
hotājaniṣṭa cetanaḥ pitā pitṛbhya ūtaye | prayakṣañ jenyaṁ vasu śakema vājino yamam ||
होता॑। अ॒ज॒नि॒ष्ट॒। चेत॑नः। पि॒ता। पि॒तृऽभ्यः॑। ऊ॒तये॑। प्र॒ऽयक्ष॑न्। जेन्य॑म्। वसु॑। श॒केम॑। वा॒जिनः॑। यम॑म्॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
अब आठ चावाले पाँचवें सूक्त का आरम्भ है। उसके प्रथम मन्त्र में जीव के गुणों का वर्णन करते हैं।
स्वामी दयानन्द सरस्वती
अथ जीवगुणानाह।
यथा होता चेतनः पितोतये पितृभ्यो जेन्यं यमं वस्वजनिष्ट विद्वांसः प्रयक्षन् तथा वाजिनो वयमेत्प्राप्तुं शकेम ॥१॥
माता सविता जोशी
(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)या सूक्तात जीव, ईश्वर, विद्वान व विदुषींच्या गुणांचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची मागच्या सूक्ताच्या अर्थाबरोबर संगती जाणली पाहिजे.