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होता॑जनिष्ट॒ चेत॑नः पि॒ता पि॒तृभ्य॑ ऊ॒तये॑। प्र॒यक्ष॒ञ्जेन्यं॒ वसु॑ श॒केम॑ वा॒जिनो॒ यम॑म्॥

English Transliteration

hotājaniṣṭa cetanaḥ pitā pitṛbhya ūtaye | prayakṣañ jenyaṁ vasu śakema vājino yamam ||

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Pad Path

होता॑। अ॒ज॒नि॒ष्ट॒। चेत॑नः। पि॒ता। पि॒तृऽभ्यः॑। ऊ॒तये॑। प्र॒ऽयक्ष॑न्। जेन्य॑म्। वसु॑। श॒केम॑। वा॒जिनः॑। यम॑म्॥

Rigveda » Mandal:2» Sukta:5» Mantra:1 | Ashtak:2» Adhyay:5» Varga:26» Mantra:1 | Mandal:2» Anuvak:1» Mantra:1


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब आठ चावाले पाँचवें सूक्त का आरम्भ है। उसके प्रथम मन्त्र में जीव के गुणों का वर्णन करते हैं।

Word-Meaning: - जैसे (होता) आदाता अर्थात् गुणादि वा अन्य पदार्थों का ग्रहणकर्त्ता (चेतनः) ज्ञानादि गुणयुक्त (पिता) और पालन करनेवाला जीव (ऊतये) रक्षा आदि के लिये (पितृभ्यः) वा पालन करनेवालों के लिये (जेन्यम्) जीतने योग्य (यमम्) नियमकर्त्ता को और (वसु) धन को (अजनिष्ट) उत्पन्न करे और विद्वान् जन (प्रयक्षन्) प्रकृष्टता से सङ्ग करते हैं वैसे (वाजिनः) विज्ञानवान् हम लोग उक्त विषय की प्राप्ति कर (शकेम) सकें ॥१॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। हे मनुष्यो! जैसे सच्चिदानन्दस्वरूप परमेश्वर इस संसार में सबकी रक्षा के लिये अनेक द्रव्यों को रचता है, वैसे विद्वान् जन भी आचरण करें ॥१॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ जीवगुणानाह।

Anvay:

यथा होता चेतनः पितोतये पितृभ्यो जेन्यं यमं वस्वजनिष्ट विद्वांसः प्रयक्षन् तथा वाजिनो वयमेत्प्राप्तुं शकेम ॥१॥

Word-Meaning: - (होता) आदाता (अजनिष्ट) जनयेत् (चेतनः) ज्ञानादिगुणयुक्तः (पिता) पालकः (पितृभ्यः) पालकेभ्यः (ऊतये) रक्षणाद्याय (प्रयक्षन्) प्रकृष्टतया यजन्ते (जेन्यम्) जेतुं योग्यम् (वसु) द्रव्यम् (शकेम) समर्थयेम (वाजिनः) विज्ञानवन्तः (यमम्) नियन्तारम् ॥१॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। हे मनुष्या यथा सच्चिदानन्दस्वरूपः परमेश्वर इह सर्वस्य रक्षणायानेकानि द्रव्याणि रचयति तथा विद्वांसोऽप्याचरन्तु ॥१॥
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MATA SAVITA JOSHI

या सूक्तात जीव, ईश्वर, विद्वान व विदुषींच्या गुणांचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची मागच्या सूक्ताच्या अर्थाबरोबर संगती जाणली पाहिजे.

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. हे माणसांनो! जसा सच्चिदानंदस्वरूप परमेश्वर या जगात सर्वांचे रक्षण करण्यासाठी अनेक द्रव्यांची निर्मिती करतो तसे विद्वान लोकांनीही आचरण करावे. ॥ १ ॥