स ईं॒ वृषा॑जनय॒त्तासु॒ गर्भं॒ स ईं॒ शिशु॑र्धयति॒ तं रि॑हन्ति। सो अ॒पां नपा॒दन॑भिम्लातवर्णो॒ऽन्यस्ये॑वे॒ह त॒न्वा॑ विवेष॥
sa īṁ vṛṣājanayat tāsu garbhaṁ sa īṁ śiśur dhayati taṁ rihanti | so apāṁ napād anabhimlātavarṇo nyasyeveha tanvā viveṣa ||
सः। ई॒म्। वृषा॑। अ॒ज॒न॒य॒त्। तासु॑। गर्भ॑म्। सः। ई॒म्। शिशुः॑। ध॒य॒ति॒। तम्। रि॒ह॒न्ति॒। सः। अ॒पाम्। नपा॑त्। अन॑भिम्लातऽवर्णः। अ॒न्यस्य॑ऽइव। इ॒ह। त॒न्वा॑। वि॒वे॒ष॒॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
अब इस जगत् में कौन लोग सुख पाते हैं, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है।
स्वामी दयानन्द सरस्वती
अथ केऽत्र सुखमाप्नुवन्तीत्याह।
स वृषा तास्वीं गर्भमजनयत्स शिशुरीं धयति तमन्ये रिहन्ति सोऽपामनभिम्लातवर्णो नपादन्यस्येवेह तन्वा विवेष ॥१३॥