ताँ इ॑या॒नो महि॒ वरू॑थमू॒तय॒ उप॒ घेदे॒ना नम॑सा गृणीमसि। त्रि॒तो न यान्पञ्च॒ होतॄ॑न॒भिष्ट॑य आव॒वर्त॒दव॑राञ्च॒क्रियाव॑से॥
tām̐ iyāno mahi varūtham ūtaya upa ghed enā namasā gṛṇīmasi | trito na yān pañca hotṝn abhiṣṭaya āvavartad avarāñ cakriyāvase ||
तान्। इ॒या॒नः। महि॑। वरू॑थम्। ऊ॒तये॑। उप॑। घ॒। इत्। ए॒ना। नम॑सा। गृ॒णी॒म॒सि॒। त्रि॒तः। न। यान्। पञ्च॑। होतॄ॑न्। अ॒भिष्ट॑ये। आ॒ऽव॒वर्त॑त्। अव॑रान्। च॒क्रिया॑। अव॑से॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।
स्वामी दयानन्द सरस्वती
पुनस्तमेव विषयमाह।
वयमभिष्टय ऊतय इयानस्त्रितो न यान् पञ्चावरान् होतॄन् पञ्चावराञ्चक्रियाऽभिष्टयेऽवस आववर्त्तत् तानूतये महि वरूथं प्राप्य वेदेना नमसोपगृणीमसि ॥१४॥