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ताँ इ॑या॒नो महि॒ वरू॑थमू॒तय॒ उप॒ घेदे॒ना नम॑सा गृणीमसि। त्रि॒तो न यान्पञ्च॒ होतॄ॑न॒भिष्ट॑य आव॒वर्त॒दव॑राञ्च॒क्रियाव॑से॥

English Transliteration

tām̐ iyāno mahi varūtham ūtaya upa ghed enā namasā gṛṇīmasi | trito na yān pañca hotṝn abhiṣṭaya āvavartad avarāñ cakriyāvase ||

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Pad Path

तान्। इ॒या॒नः। महि॑। वरू॑थम्। ऊ॒तये॑। उप॑। घ॒। इत्। ए॒ना। नम॑सा। गृ॒णी॒म॒सि॒। त्रि॒तः। न। यान्। पञ्च॑। होतॄ॑न्। अ॒भिष्ट॑ये। आ॒ऽव॒वर्त॑त्। अव॑रान्। च॒क्रिया॑। अव॑से॥

Rigveda » Mandal:2» Sukta:34» Mantra:14 | Ashtak:2» Adhyay:7» Varga:21» Mantra:4 | Mandal:2» Anuvak:4» Mantra:14


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

Word-Meaning: - हम लोग (अभिष्टये) अभीष्ट सुख की (ऊतये) रक्षा आदि के अर्थ (इयानः) प्राप्त होता हुआ कोई जन (त्रितः) जो शरीर और आत्मा सम्बन्धी सुख को विस्तृत है उसके (न) समान (यान्) जिन (पञ्च) पाञ्च (अवरान्) अर्वाचीन (होतॄन्) ग्रहण करनेवालों को और पाँच अर्वाचीन (चक्रिया) चाक के समान वर्त्तमानों को अभीष्ट सुख वा (अवसे) कामना के लिये (आववर्त्तत्) सब ओर से वर्त्तता है (तान्) उनको (ऊतये) रक्षा आदि के लिये (महि) बड़े (वरूथम्) श्रेष्ठ घर को प्राप्त हो (घ,इत्) ही निश्चय कर (एना) इस (नमसा) नमस्कार से (उप,गृणीमसि) उपस्तुत करते हैं अर्थात् उनकी अतिनिकटस्थ ही स्तुति करते हैं ॥१४॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जैसे कर्मोपासना और ज्ञान विद्या का जाननेवाला अगले-पिछले पवनों को जानकर अपनी और दूसरों की रक्षा के लिये वर्त्तमान है, वैसे हम लोग प्रवृत्त हों ॥१४॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह।

Anvay:

वयमभिष्टय ऊतय इयानस्त्रितो न यान् पञ्चावरान् होतॄन् पञ्चावराञ्चक्रियाऽभिष्टयेऽवस आववर्त्तत् तानूतये महि वरूथं प्राप्य वेदेना नमसोपगृणीमसि ॥१४॥

Word-Meaning: - (यान्) (इयानः) प्राप्नुवन् (महि) महत् (वरूथम्) वरं गृहम् (ऊतये) रक्षणाद्याय (उप) (घ) अपि (इत्) एव (एना) एनेन (नमसा) नमस्कारेण (गृणीमसि) स्तुमः (त्रितः) यस्त्रीणि शरीरात्मसम्बन्धिसुखानि तनोति सः (न) इव (यान्) (पञ्च) प्राणाऽपानव्यानोदानसमानान् (होतॄन्) आदातॄन् (अभिष्टये) अभीष्टसुखाय (आववर्त्तत्) समन्ताद्वर्त्तयते (अवरान्) अर्वाचीनान् (चक्रिया) चक्राविव वर्त्तमानान् (अवसे) कामनायै ॥१४॥
Connotation: - अत्रोपमालङ्कारः। यथा कर्मोपासनाज्ञानवित्परावरान् वायून् विदित्वा स्वस्य परेषां च रक्षणाय वर्त्तते तथा वयं प्रवर्त्तेमहि यथोत्तमं प्रासादं प्राप्य जनाः सुखिनो भवन्ति तथा वयमपि भवेम ॥१४॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात उपमालंकार आहे. जशी कर्मोपासना व ज्ञानोपासना करणारा (माणूस) मागच्या पुढच्या वायूला जाणून आपले व दुसऱ्याचे रक्षण करतो तसे तुम्ही लोकही प्रवृत्त व्हा. जसे उत्तम प्रासाद मिळाल्यावर लोक सुखी होतात तसे आम्हीही व्हावे. ॥ १४ ॥