पदार्थान्वयभाषाः - (घर्मा-इव) हे आश्विनौ-सभापति, सेनापति ! तुम दोनों प्रकाशमान सूर्य और चन्द्रमा की भाँति वर्तमान हो (जठरे) राष्ट्र के अन्दर (मधु) अन्नरसात्मक खाद्यपदार्थ को (सनेरू) सम्भक्त करनेवाले प्रजा में वितरण करनेवाले होते हो (भगे) तथा राष्ट्रैश्वर्य के निमित्त (अविता) रक्षक हो (तुर्फरी) हिंसक शस्त्रवाले (फारिवा-अरम्) वधक शस्त्र धारण करने में समर्थ हो (पतरा-इव) उड़नेवाले दो कबूतरों की भाँति (चचरा) बहुत सञ्चरणशील हो बहुत सञ्चार करते हो (चन्द्रनिर्णिक्) आह्लादकरूपवाले प्रसन्न मुखवाले (मनः-ऋङ्गा) यथार्थ मनोयोग से राजकार्यसाधक हो (मनन्या न जग्मी) मनन करने में साधु की मनस्वियों की भाँति गति करनेवाले-प्रगति करनेवाले हो ॥८॥
भावार्थभाषाः - सभापति और सेनापति राष्ट्र में प्रजाजनों के लिये अन्नादि खाद्य पदार्थों की उचित व्यवस्था करनेवाले राष्ट्रवैभव के रक्षक, शत्रु के लिए शस्त्रधारण करने में समर्थ, राष्ट्र की राजनीति के मनन करने में सफल तथा सर्वत्र प्रगति करने योग्य हों ॥८॥