क्ष॒पो रा॑जन्नु॒त त्मनाग्ने॒ वस्तो॑रु॒तोषसः॑। स ति॑ग्मजम्भ र॒क्षसो॑ दह॒ प्रति॑ ॥
kṣapo rājann uta tmanāgne vastor utoṣasaḥ | sa tigmajambha rakṣaso daha prati ||
क्ष॒पः। रा॒ज॒न्। उ॒त। त्मना॑। अग्ने॑। वस्तोः॑। उ॒त। उ॒षसः॑। सः। ति॒ग्म॒ऽज॒म्भ॒। र॒क्षसः॑। द॒ह॒। प्रति॑ ॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
फिर वह कैसा हो, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है ॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
पुनः स कीदृश इत्युपदिश्यते ॥
हे तिग्मजम्भाऽग्ने राजँस्त्वं त्मना यथा सूर्यः क्षपो निवर्त्योत स वस्तोरुषसो भावं करोति तथा धार्मिकेषु सज्जनेषु विद्याविनयौ प्रकाश्योत रक्षसः प्रति दह ॥ ६ ॥