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क्ष॒पो रा॑जन्नु॒त त्मनाग्ने॒ वस्तो॑रु॒तोषसः॑। स ति॑ग्मजम्भ र॒क्षसो॑ दह॒ प्रति॑ ॥

English Transliteration

kṣapo rājann uta tmanāgne vastor utoṣasaḥ | sa tigmajambha rakṣaso daha prati ||

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Pad Path

क्ष॒पः। रा॒ज॒न्। उ॒त। त्मना॑। अग्ने॑। वस्तोः॑। उ॒त। उ॒षसः॑। सः। ति॒ग्म॒ऽज॒म्भ॒। र॒क्षसः॑। द॒ह॒। प्रति॑ ॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:79» Mantra:6 | Ashtak:1» Adhyay:5» Varga:27» Mantra:6 | Mandal:1» Anuvak:13» Mantra:6


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर वह कैसा हो, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है ॥

Word-Meaning: - हे (तिग्मजम्भ) तीव्र मुख से बोलनेहारे (अग्ने) विद्वन् ! (राजन्) न्याय विनय से प्रकाशमान तू (त्मना) अपने आत्मा से जैसे सूर्य (क्षपः) रात्रियों को निवर्त्त करके (सः) वह (वस्तोः) दिन (उत) और (उषसः) प्रभातों को विद्यमान करता है, वैसे धार्मिक सज्जनों में विद्या और विनय का प्रकाश कर (उत) और (रक्षसः) दुष्टाचारियों को (प्रतिदह) प्रत्यक्ष दग्ध कर ॥ ६ ॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे सविता निकट प्राप्त जगत् को प्रकाशित कर वृष्टि करके सब जगत् की रक्षा और अन्धकार का निवारण करता है, वैसे सज्जन राजा लोग धार्मिकों की रक्षा कर दुष्टों के दण्ड से राज्य की रक्षा करें ॥ ६ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनः स कीदृश इत्युपदिश्यते ॥

Anvay:

हे तिग्मजम्भाऽग्ने राजँस्त्वं त्मना यथा सूर्यः क्षपो निवर्त्योत स वस्तोरुषसो भावं करोति तथा धार्मिकेषु सज्जनेषु विद्याविनयौ प्रकाश्योत रक्षसः प्रति दह ॥ ६ ॥

Word-Meaning: - (क्षपः) रात्रीः (राजन्) न्यायविनयाभ्यां प्रकाशमान (उत) अपि (त्मना) आत्मना (अग्ने) विद्वन् (वस्तोः) दिनस्य (उत) अपि (उषसः) प्रत्यूषकालस्य (तिग्मजम्भ) तिग्मं तीव्रं जम्भं वक्त्रं यस्य तत्सम्बुद्धौ (रक्षसः) दुष्टान् (दह) (प्रति) ॥ ६ ॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथा सविता सन्निहितं जगत् प्रकाश्य वृष्टिं कृत्वा सर्वं रक्षति तमो निवारयति राजानो धार्मिकान् संरक्ष्य दुष्टान् दण्डयित्वा राज्यं रक्षन्तु ॥ ६ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जसा जवळ असलेल्या स्थळांना सूर्य प्रकाशित करतो. वृष्टी करून सर्व जगाचे रक्षण व अंधकाराचे निवारण करतो तसे सज्जन राजेलोकांनी धार्मिकांचे रक्षण करून दुष्टांना दंड देऊन राज्याचे रक्षण करावे. ॥ ६ ॥