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रा॒ये नु यं ज॒ज्ञतू॒ रोद॑सी॒मे रा॒ये दे॒वी धि॒षणा॑ धाति दे॒वम् । अध॑ वा॒युं नि॒युत॑: सश्चत॒ स्वा उ॒त श्वे॒तं वसु॑धितिं निरे॒के ॥

English Transliteration

rāye nu yaṁ jajñatū rodasīme rāye devī dhiṣaṇā dhāti devam | adha vāyuṁ niyutaḥ saścata svā uta śvetaṁ vasudhitiṁ nireke ||

Pad Path

रा॒ये । नु । यम् । ज॒ज्ञतुः॑ । रोद॑सी॒ इति॑ । इ॒मे इति॑ । रा॒ये । दे॒वी । धि॒षणा॑ । धा॒ति॒ । दे॒वम् । अध॑ । वा॒युम् । नि॒ऽयुतः॑ । स॒श्च॒त॒ । स्वाः । उ॒त । श्वे॒तम् । वसु॑ऽधितिम् । नि॒रे॒के ॥ ७.९०.३

Rigveda » Mandal:7» Sukta:90» Mantra:3 | Ashtak:5» Adhyay:6» Varga:12» Mantra:3 | Mandal:7» Anuvak:6» Mantra:3


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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (यम्) जिस पदार्थविद्यावेत्ता पुरुष को (रोदसी) द्युलोक और पृथ्वीलोक ने (राये) ऐश्वर्य्य के लिये उत्पन्न किया है और (देवं) जिस दिव्यशक्तिसम्पन्न पुरुष को (धिषणा) स्तुतिरूप (देवी) दिव्यशक्ति (धाति) धारण करती है, (वायुं) उस पदार्थविद्यावेत्ता विद्वान् को (नियुतः) जो पदार्थविद्या के लिये नियुक्त किया गया है, (सश्चत) तुम सेवन करो (उत) और (निरेके) दरिद्र के दूर करने के लिये (अध) और (श्वेतं) पवित्र (वसुधितिं) धन को (स्वाः) उस आत्मभूत विद्वान् के लिये तुम उत्पन्न करने का यत्न करो ॥३॥
Connotation: - स्वभावोक्ति अलङ्कार द्वारा इस मन्त्र में परमात्मा यह उपदेश करते हैं कि मानो प्रकृति ने ही ऐसे पुरुष को उत्पन्न किया है, जो संसार के दरिद्र का नाश करता है। ऐसा पुरुष जिस देश में उत्पन्न होता है, उस देश में अनैश्वर्य और दरिद्रता का गन्ध भी नहीं रहता ॥३॥
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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (यम्) पदार्थविद्यावेत्तारं यं पुरुषं (रोदसी) द्यावापृथिव्यौ (राये) ऐश्वर्याय (जज्ञतुः) उत्पादयामासतुः, तथा (देवम्) दिव्यशक्तिसम्पन्नं पुरुषं (धिषणा) स्तुतिरूपा (देवी) दिव्यशक्तिः (धाति) धारयति (वायुम्) तं पदार्थविद्यावेत्तारं (नियुतः) यो हि तद्विद्यायां नियुक्तः, तं (सश्चत) सेवतां (उत) तथा (निरेके) दरिद्रं विनाशयितुं (अध) तथा (श्वेतम्) पवित्रं (वसुधितिम्) धनं च लब्धुं (स्वाः) आत्मभूतं तं विद्वांसमुत्पादयितुं यतस्व ॥३॥