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योनि॑ष्ट इन्द्र॒ सद॑ने अकारि॒ तमा नृभिः॑ पुरुहूत॒ प्र या॑हि। असो॒ यथा॑ नोऽवि॒ता वृ॒धे च॒ ददो॒ वसू॑नि म॒मद॑श्च॒ सोमैः॑ ॥१॥

English Transliteration

yoniṣ ṭa indra sadane akāri tam ā nṛbhiḥ puruhūta pra yāhi | aso yathā no vitā vṛdhe ca dado vasūni mamadaś ca somaiḥ ||

Pad Path

योनिः॑। ते॒। इ॒न्द्र॒। सद॑ने। अ॒का॒रि॒। तम्। आ। नृऽभिः॑। पु॒रु॒ऽहू॒त॒। प्र। या॒हि॒। असः॑। यथा॑। नः॒। अ॒वि॒ता। वृ॒धे। च॒। ददः॑। वसू॑नि। म॒मदः॑। च॒। सोमैः॑ ॥१॥

Rigveda » Mandal:7» Sukta:24» Mantra:1 | Ashtak:5» Adhyay:3» Varga:8» Mantra:1 | Mandal:7» Anuvak:2» Mantra:1


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब छः ऋचावाले चौबीसवें सूक्त का आरम्भ है, उसके प्रथम मन्त्र में मनुष्यों को क्या करना चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - (पुरुहूत) बहुतों से स्तुति पाये हुए (इन्द्र) मनुष्यों के स्वामी राजा ! (ते) आपके (सदने) उत्तम स्थान में जो (योनिः) घर तुम से (अकारि) किया जाता है (तम्) उसको (नृभिः) नायक मनुष्यों के साथ (प्र, याहि) उत्तमता से जाओ (यथा) जैसे (नः) हमारी (अविता) रक्षा करनेवाला (असः) होओ और हमारी (वृधे) वृद्धि के लिये (च) भी (वसूनि) द्रव्य वा उत्तम पदार्थों को (आ, ददः) ग्रहण करो (सोमैः, च) और ऐश्वर्य वा उत्तमोत्तम ओषधियों के रसों से (ममदः) हर्ष को प्राप्त होओ, वैसे सब के सुख के लिये होओ ॥१॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है । मनुष्यों को चाहिये कि निवासस्थान उत्तम जल, स्थल और पवन जहाँ हो, उस देश में घर बना कर वहाँ बसें, सब के सुखों के बढ़ाने के लिये धनादि पदार्थों से अच्छी रक्षा कर सबों को आनन्दित करें ॥१॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ मनुष्यैः किं कर्त्तव्यमित्याह ॥

Anvay:

हे पुरुहूत इन्द्र राजंस्ते सदने यो योनिस्त्वयाऽकारि तं नृभिस्सह प्र याहि यथा नोऽविताऽसो नो वृधे च वसून्याददः सोमैश्च ममदस्तथा सर्वेषां सुखाय भव ॥१॥

Word-Meaning: - (योनिः) गृहम् (ते) तव (इन्द्र) नरेश (सदने) उत्तमे स्थले (अकारि) क्रियते (तम्) (आ) (नृभिः) नायकैर्मनुष्यैः (पुरुहूत) बहुभिः स्तुत (प्र) (याहि) (असः) भवेः (यथा) (नः) अस्माकम् (अविता) रक्षकः (वृधे) वर्धनाय (च) (ददः) ददासि (वसूनि) द्रव्याणि (ममदः) आनन्द (च) आनन्दय (सोमैः) ऐश्वर्योत्तमौषधिरसैः ॥१॥
Connotation: - अत्रोपमालङ्कारः । मनुष्यैर्निवासस्थानमुत्तमजलस्थलवायुके देशे गृहं निर्माय तत्र निवसितव्यम्। सर्वैः सर्वेषां सुखवर्धनाय धनादिभिः संरक्षणं कृत्वाऽखिलैरानन्दितव्यम् ॥१॥
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MATA SAVITA JOSHI

या सूक्तात इंद्र, राजा, स्त्री, पुरुष व विद्वानांच्या गुणांचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची पूर्व सूक्तार्थाबरोबर संगती जाणावी.

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - या मंत्रात उपमालंकार आहे. माणसांनी उत्तम जल, स्थल व वायू ज्या स्थानी असेल अशा स्थानी घरे बांधून निवास करावा. सर्वांचे सुख वाढविण्यासाठी धन वगैरेचे चांगल्या प्रकारे रक्षण करून सर्वांना आनंदित करावे. ॥ १ ॥