Go To Mantra

इ॒मो अ॑ग्ने वी॒तत॑मानि ह॒व्याज॑स्रो वक्षि दे॒वता॑ति॒मच्छ॑। प्रति॑ न ईं सुर॒भीणि॑ व्यन्तु ॥१८॥

English Transliteration

imo agne vītatamāni havyājasro vakṣi devatātim accha | prati na īṁ surabhīṇi vyantu ||

Pad Path

इ॒मो इति॑। अ॒ग्ने॒। वी॒तऽत॑मानि। ह॒व्या। अज॑स्रः। व॒क्षि॒। दे॒वऽता॑तिम्। इच्छ॑। प्रति॑। नः॒। ई॒म्। सु॒र॒भीणि॑। व्य॒न्तु॒ ॥१८॥

Rigveda » Mandal:7» Sukta:1» Mantra:18 | Ashtak:5» Adhyay:1» Varga:26» Mantra:3 | Mandal:7» Anuvak:1» Mantra:18


Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर मनुष्यों को क्या प्राप्त करना चाहिये, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (अग्ने) तेजस्विन् विद्वन् ! जिससे (अजस्रः) निरन्तर (देवतातिम्) उत्तम सुख देनेवाले यज्ञ को (अच्छ) अच्छे प्रकार (वक्षि) प्राप्त करते हैं इससे (इमो) इन (सुरभीणि) सुगन्धि आदि गुणों के सहित (वीततमानि) अतिशयकर व्याप्त होने को समर्थ (हव्या) देने योग्य वस्तुओं को (नः) हमारे (प्रति) प्रति (ईम्) सब ओर से (व्यन्तु) प्राप्त करें ॥१८॥
Connotation: - मनुष्य जैसे अग्नि में उत्तम हविष्यों का होम कर जल आदि को शुद्ध करके सब के उपकार को सिद्ध करते हैं, वैसे वर्त्ताव करना चाहिये ॥१८॥
Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनर्मनुष्यैः किं प्राप्तव्यमित्याह ॥

Anvay:

हे अग्ने ! येनाऽजस्नो देवतातिमच्छ वक्ष्यनेन न इमो सुरभीणि वीततमानि हव्या च नः प्रति ईं व्यन्तु ॥१८॥

Word-Meaning: - (इमो) इमानि। अत्र विभक्तेरोकारादेशः। (अग्ने) (वीततमानि) अतिशयेन व्याप्तुं समर्थानि (हव्या) दातुं योग्यानि (अजस्रः) निरन्तरः (वक्षि) वहसि (देवतातिम्) दिव्यसुखप्रापकं यज्ञम् (अच्छ) सम्यक् (प्रति) (नः) (ईम्) (सुरभीणि) सुगन्ध्यादिगुणसहितानि (व्यन्तु) प्राप्तुवन्तु ॥१८॥
Connotation: - मनुष्या यथाग्ना उत्तमानि हवींषि हत्वा जलादीनि संशोध्य सर्वोपकारं साध्नुवन्ति तथैव वर्त्तताम् ॥१८॥
Reads times

MATA SAVITA JOSHI

N/A

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - जशी अग्नीत उत्तम हवींची आहुती दिली जाते व जल शुद्ध करून सर्वांवर उपकार केला जातो तसे माणसांनी वागावे. ॥ १८ ॥