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अहि॑रिव भो॒गैः पर्ये॑ति बा॒हुं ज्याया॑ हे॒तिं प॑रि॒बाध॑मानः। ह॒स्त॒ध्नो विश्वा॑ व॒युना॑नि वि॒द्वान्पुमा॒न्पुमां॑सं॒ परि॑ पातु वि॒श्वतः॑ ॥१४॥

English Transliteration

ahir iva bhogaiḥ pary eti bāhuṁ jyāyā hetim paribādhamānaḥ | hastaghno viśvā vayunāni vidvān pumān pumāṁsam pari pātu viśvataḥ ||

Pad Path

अहिः॑ऽइव। भो॒गैः। परि॑। ए॒ति॒। बा॒हुम्। ज्यायाः॑। हे॒तिम्। प॒रि॒ऽबाध॑मानः। ह॒स्त॒ऽघ्नः। विश्वा॑। व॒युना॑नि। वि॒द्वान्। पुमा॑न्। पुमां॑सम्। परि॑। पा॒तु॒। वि॒श्वतः॑ ॥१४॥

Rigveda » Mandal:6» Sukta:75» Mantra:14 | Ashtak:5» Adhyay:1» Varga:21» Mantra:4 | Mandal:6» Anuvak:6» Mantra:14


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर राजा और भृत्य परस्पर कैसे वर्त्तें, इस विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे राजन् ! जो (हस्तघ्नः) हाथों से मारनेवाला (ज्यायाः) प्रत्यञ्चा के सम्बन्धी (हेतिम्) वज्र के समान बाण को (परिबाधमानः) सब ओर से रोकता और (विद्वान्) जानने योग्य को जानता हुआ (पुमान्) पुरुषार्थी जन (अहिरिव) मेघ के समान (भोगैः) भोगों के साथ (बाहुम्) अपने स्वामी की भुजा को और (विश्वा) समस्त (वयुनानि) ज्ञानों को (परि, एति) सब ओर से प्राप्त होता है वा (विश्वतः) सब ओर से (पुमांसम्) पुरुषार्थी की (परि, पातु) अच्छे प्रकार पालना करे, उसका सर्वदा सत्कार करो ॥१४॥
Connotation: - हे वीरो ! जो राजा समस्त मेघ के समान भोगवृष्टि करता है तथा समग्रविद्यायुक्त होता हुआ सब की सब ओर से तृप्ति करता है, उसकी सब जन सब ओर से निरन्तर रक्षा करें ॥१४॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुना राजा भृत्याश्च परस्परं कथं वर्तेरन्नित्याह ॥

Anvay:

हे राजन् ! यो हस्तघ्नो ज्याया हेतिं परिबाधमानो विद्वान् पुमान्नहिरिव भोगैः सह बाहुं विश्वा वयुनानि च पर्येति विश्वतः पुमांसं परि पातु तं सर्वदा सत्कुर्याः ॥१४॥

Word-Meaning: - (अहिरिव) मेघ इव (भोगैः) (परि) (एति) परितः प्राप्नोति (बाहुम्) पत्युर्भुजम् (ज्यायाः) प्रत्यञ्चायाः (हेतिम्) वज्रवद्बाणम् (परिबाधमानः) सर्वतो निरुन्धानः (हस्तघ्नः) यो हस्ताभ्यां हन्ति (विश्वा) सर्वाणि (वयुनानि) ज्ञानानि (विद्वान्) यो वेदितव्यं वेत्ति (पुमान्) पुरुषार्थी (पुमांसम्) पुरुषार्थिनम् (परि) सर्वतः (पातु) रक्षतु (विश्वतः) सर्वतः ॥१४॥
Connotation: - हे वीरा ! यो राजा सर्वान् मेघवद्भोगवृष्टिं करोति समग्रविद्यायुक्तः सन् सर्वान् सर्वतः प्रीणाति तं सर्वेऽभितः सततं रक्षन्तु ॥१४॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - हे वीरांनो ! जो राजा संपूर्ण मेघाप्रमाणे भोगवृष्टी करतो व विद्यायुक्त करतो, सर्वांना सर्व दृष्टीने तृप्त करतो त्याचे सर्वांनी सर्व तऱ्हेचे रक्षण करावे. ॥ १४ ॥