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अस॑श्चन्ती॒ भूरि॑धारे॒ पय॑स्वती घृ॒तं दु॑हाते सु॒कृते॒ शुचि॑व्रते। राज॑न्ती अ॒स्य भुव॑नस्य रोदसी अ॒स्मे रेतः॑ सिञ्चतं॒ यन्मनु॑र्हितम् ॥२॥

English Transliteration

asaścantī bhūridhāre payasvatī ghṛtaṁ duhāte sukṛte śucivrate | rājantī asya bhuvanasya rodasī asme retaḥ siñcataṁ yan manurhitam ||

Pad Path

अस॑श्चन्ती॒ इति॑। भूरि॑धारे॒ इति॒ भूरि॑ऽधारे। पय॑स्वती॒ इति॑। घृ॒तम्। दु॒हा॒ते॒ इति॑। सु॒ऽकृते॑। शुचि॑व्रते॒ इति॒ शुचि॑ऽव्रते। राज॑न्ती॒ इति॑। अ॒स्य। भुव॑नस्य। रो॒द॒सी॒ इति॑। अ॒स्मे इति॑। रेतः॑। सि॒ञ्च॒त॒म्। यत्। मनुः॑ऽहितम् ॥२॥

Rigveda » Mandal:6» Sukta:70» Mantra:2 | Ashtak:5» Adhyay:1» Varga:14» Mantra:2 | Mandal:6» Anuvak:6» Mantra:2


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर वे कैसे हैं, इस विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! जो (असश्चन्ती) अलग-अलग वर्त्तमान (भूरिधारे) जिनकी बहुत धारायें विद्यमान (पयस्वती) जो बहुत जल से युक्त (सुकृते) जो ईश्वर ने सुन्दर बनाये वा अच्छे कर्म करानेवाले और (शुचिव्रते) पवित्र कर्मयुक्त हैं तथा (अस्य) इस (भुवनस्य) ब्रह्माण्ड के सम्बन्ध में (राजन्ती) प्रकाशमान हैं, वे (रोदसी) आकाश और पृथिवी (अस्मे) हम लोगों में (यत्) जो (मनुर्हितम्) मनुष्यों का हित करनेवाला है, उस (घृतम्) जल को (दुहाते) पूर्ण करते हैं, उस (रेतः) जल वा वीर्य्य को (सिञ्चतम्) सींचते हैं, उन्हें यथावत् उपकार के लिये प्राप्त होओ ॥२॥
Connotation: - हे मनुष्यो ! सूर्य्य और भूमि ही सब जगत् की रक्षा के निमित्त, बहुत उदक आदि पदार्थयुक्त और सब के काम को पूर्ण करते हैं, उनको यथावत् जानकर कार्य्य की सिद्धि के लिये अच्छे प्रकार उनका प्रयोग करो ॥२॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्ते कथंभूते इत्याह ॥

Anvay:

हे मनुष्या ! येऽसश्चन्ती भूरिधारे पयस्वती सुकृते शुचिव्रतेऽस्य भुवनस्य राजन्ती रोदसी अस्मे यन्मनुर्हितं तद् घृतं दुहाते तद्रेतश्च सिञ्चतं ते यथावदुपकारायाऽनयन्तु ॥२॥

Word-Meaning: - (असश्चन्ती) पृथक् पृथग्वर्त्तमाने (भूरिधारे) भूरि बह्व्यो धारा ययोस्ते (पयस्वती) बहूदकयुक्ते (घृतम्) उदकम् (दुहाते) पिपृते (सुकृते) ईश्वरेण सुष्ठु निर्मिते सुकृतकर्मनिमित्ते वा (शुचिव्रते) पवित्रकर्मयुक्ते (राजन्ती) प्रकाशमाने (अस्य) (भुवनस्य) ब्रह्माण्डस्य (रोदसी) द्यावापृथिव्यौ (अस्मे) अस्मासु (रेतः) उदकं वीर्यं वा (सिञ्चतम्) सिञ्चतः। अत्र पुरुषव्यत्ययः (यत्) (मनुर्हितम्) मनुष्येभ्यो हितम् ॥२॥
Connotation: - हे मनुष्या ! सूर्यभूमी एव सर्वस्य पालननिमित्ते बहूदकादिपदार्थयुक्ते सर्वेषां कामं पूरयतस्ते यथावद्विज्ञाय कार्यसिद्धये सम्प्रयुङ्ध्वम् ॥२॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - हे माणसांनो! सूर्य व भूमीच सर्व जगाचे पालन करण्याचे निमित्त आहेत. जल इत्यादी पदार्थांनी युक्त असून सर्वांचे काम पूर्ण करतात. त्यांना यथायोग्य जाणून कार्यसिद्धीसाठी त्यांचा चांगल्या प्रकारे उपयोग करून घ्या. ॥ २ ॥