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वैश्वा॑नर॒ तव॒ तानि॑ व्र॒तानि॑ म॒हान्य॑ग्ने॒ नकि॒रा द॑धर्ष। यज्जाय॑मानः पि॒त्रोरु॒पस्थेऽवि॑न्दः के॒तुं व॒युने॒ष्वह्ना॑म् ॥५॥

English Transliteration

vaiśvānara tava tāni vratāni mahāny agne nakir ā dadharṣa | yaj jāyamānaḥ pitror upasthe vindaḥ ketuṁ vayuneṣv ahnām ||

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Pad Path

वैश्वा॑नर। तव॑। तानि॑। व्र॒तानि॑। म॒हानि॑। अ॒ग्ने॒। नकिः॑। आ। द॒ध॒र्ष॒। यत्। जा॑य॑मानः। पि॒त्रोः। उ॒पऽस्थे॑। अवि॑न्दः। के॒तुम्। व॒युने॑षु। अह्ना॑म् ॥५॥

Rigveda » Mandal:6» Sukta:7» Mantra:5 | Ashtak:4» Adhyay:5» Varga:9» Mantra:5 | Mandal:6» Anuvak:1» Mantra:5


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर मनुष्यों को क्या प्राप्त कराना चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (वैश्वानर) सम्पूर्ण संसार में विद्या और धर्म्म के प्रकाश से अग्रणी (अग्ने) अग्नि के सदृश प्रकाशस्वरूप ! (यत्) जो आप (पित्रोः) माता-पिता के सदृश विद्या और आचार्य्य के (उपस्थे) समीप में (जायमानः) प्रकट हुआ (अह्नाम्) दिनों के मध्य में (वयुनेषु) पृथिवी से लेकर परमेश्वर पर्य्यन्त पदार्थों के विज्ञानों में (केतुम्) बुद्धि को (अविन्दः) प्राप्त होते हो उन (तव) आपके (तानि) उक्त ब्रह्मचर्य्य, विद्याग्रहण, सत्यभाषण आदि (महानि) बड़े (व्रतानि) कर्म्मों को कोई भी (नकिः) नहीं (आ, दधर्ष) तिरस्कार करे ॥५॥
Connotation: - जो मनुष्य दूसरे विद्यारूप जन्म को प्राप्त होवें, तो उनके सफल कर्म्म होते हैं, ऐसा जानना चाहिये ॥५॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनर्मनुष्यैः किं प्रापणीयमित्याह ॥

Anvay:

हे वैश्वानराऽग्ने ! यद्यस्त्वं पित्रोरुपस्थे जायमानोऽह्नां वयुनेषु केतुमविन्दस्तमस्य तव तानि महानि व्रतानि कोऽपि नकिराऽऽदधर्ष ॥५॥

Word-Meaning: - (वैश्वानर) विश्वस्मिन् विद्याधर्म्मप्रकाशनेन नायक (तव) (तानि) ब्रह्मचर्य्यविद्याग्रहणसत्यभाषणादीनि (व्रतानि) कर्म्माणि (महानि) महान्ति (अग्ने) पावकवत्प्रकाशात्मन् (नकिः) निषेधे (आ) (दधर्ष) तिरस्कुर्य्यात् (यत्) यः (जायमानः) (पित्रोः) जनकयोरिव विद्याऽऽचार्य्ययोः (उपस्थे) समीपे (अविन्दः) विन्दसि प्राप्नोषि (केतुम्) प्रज्ञाम् (वयुनेषु) पृथिवीमारभ्य परमेश्वरपर्य्यन्तानां विज्ञानेषु (अह्नाम्) दिनानां मध्ये ॥५॥
Connotation: - यदि मनुष्या द्वितीयं विद्याजन्म प्राप्नुयुस्तर्हि तेषाममोघानि कर्म्माणि भवन्तीति वेद्यम् ॥५॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जी माणसे विद्यारूपी दुसरा जन्म प्राप्त करतात त्यांचे कर्म सफल होते हे जाणले पाहिजे. ॥ ५ ॥