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य ईं॒ राजा॑नावृतु॒था वि॒दध॒द्रज॑सो मि॒त्रो वरु॑ण॒श्चिके॑तत्। ग॒म्भी॒राय॒ रक्ष॑से हे॒तिम॑स्य॒ द्रोघा॑य चि॒द्वच॑स॒ आन॑वाय ॥९॥

English Transliteration

ya īṁ rājānāv ṛtuthā vidadhad rajaso mitro varuṇaś ciketat | gambhīrāya rakṣase hetim asya droghāya cid vacasa ānavāya ||

Pad Path

यः। ई॒म्। राजा॑नौ। ऋ॒तु॒ऽथा। वि॒ऽदध॑त्। रज॑सः। मि॒त्रः। वरु॑णः। चिके॑तत्। ग॒म्भी॒राय॑। रक्ष॑से। हे॒तिम्। अ॒स्य॒। द्रोघा॑य। चि॒त्। वच॑से। आन॑वाय ॥९॥

Rigveda » Mandal:6» Sukta:62» Mantra:9 | Ashtak:5» Adhyay:1» Varga:2» Mantra:4 | Mandal:6» Anuvak:6» Mantra:9


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर वह क्या करे, इस विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे विद्वानो ! (यः) जो (मित्रः) मित्र वा (वरुणः) शमादिगुण युक्त जन (गम्भीराय) गम्भीर (आनवाय) सब ओर से नवीन (वचसे) वचन के लिये (चित्) और (द्रोघाय) द्रोह तथा (रक्षसे) दुष्ट आचरणवाले के लिये (अस्य) इसके ऊपर (हेतिम्) वज्र को (रजसः) और लोकजात के (ऋतुथा) ऋतुओं से (राजानौ) प्रकाशमान सूर्य और चन्द्रमा के तुल्य सभासेनापति को (विदधत्) विधान करता हुआ (ईम्) सब ओर से (चिकेतत्) जानता है, उसको तुम उत्साह देओ ॥९॥
Connotation: - जैसे सूर्य्य चन्द्रमा ऋतुओं को बाँट और अन्धकार निवारण कर जगत् को सुखी करते हैं, वैसे ही विद्यादि शुभगुणों का प्रचार संसार में अच्छे प्रकार समर्थन, सत्य और असत्य का विभाग और अविद्यान्धकार का निवारण कर विद्वान् जन सबको आनन्दित करते हैं ॥९॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्स किं कुर्य्यादित्याह ॥

Anvay:

हे विद्वांसो ! यो मित्रो वरुणो गम्भीरायाऽऽनवाय वचसे चिदपि द्रोघाय रक्षसेऽस्योपरि हेतिं रजस ऋतुथा राजानौ विदधत्सन्नीं चिकेतत्तं यूयमुत्साहयत ॥९॥

Word-Meaning: - (यः) (ईम्) सर्वतः (राजानौ) प्रकाशमानौ सूर्य्याचन्द्रमसाविव सभासेनेशौ (ऋतुथा) ऋतुभ्यः (विदधत्) विधानं कुर्वन् (रजसः) लोकजातस्य (मित्रः) सुहृत् (वरुणः) शमादिगुणान्वितः (चिकेतत्) चिकेतति विजानाति (गम्भीराय) (रक्षसे) दुष्टाचरणाय (हेतिम्) वज्रम् (अस्य) (द्रोघाय) द्रोहाय (चित्) अपि (वचसे) वचनाय (आनवाय) समन्तान्नवीनाय ॥९॥
Connotation: - यथा सूर्याचन्द्रमसावृतून् विभज्यान्धकारं निवार्य्य जगत्सुखयतस्तथैव विद्यादिशुभगुणप्रचारं जगति प्रकल्प्य सत्याऽसत्ये विभज्याऽविद्याऽन्धकारं निवार्य विद्वांसः सर्वानानन्दयन्ति ॥९॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जसे सूर्य व चंद्र ऋतूंचे विभाजन व अंधकाराचे निवारण करून जगाला सुखी करतात तसेच विद्वान लोक विद्या इत्यादी शुभ गुणांचा जगात प्रचार करून सत्यासत्याचे विभाजन करून अविद्यांधकाराचे निवारण करून सर्वांना आनंदित करतात. ॥ ९ ॥