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पू॒षा सु॒बन्धु॑र्दि॒व आ पृ॑थि॒व्या इ॒ळस्पति॑र्म॒घवा॑ द॒स्मव॑र्चाः। यं दे॒वासो॒ अद॑दुः सू॒र्यायै॒ कामे॑न कृ॒तं त॒वसं॒ स्वञ्च॑म् ॥४॥

English Transliteration

pūṣā subandhur diva ā pṛthivyā iḻas patir maghavā dasmavarcāḥ | yaṁ devāso adaduḥ sūryāyai kāmena kṛtaṁ tavasaṁ svañcam ||

Pad Path

पू॒षा। सु॒ऽबन्धुः॑। दि॒वः। आ। पृ॒थि॒व्याः। इ॒ळः। पतिः॑। म॒घऽवा॑। द॒स्मऽव॑र्चाः। यम्। दे॒वासः॑। अद॑दुः। सू॒र्यायै॑। कामे॑न। कृ॒तम्। त॒वस॑म्। सु॒ऽअञ्च॑म् ॥४॥

Rigveda » Mandal:6» Sukta:58» Mantra:4 | Ashtak:4» Adhyay:8» Varga:24» Mantra:4 | Mandal:6» Anuvak:5» Mantra:4


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर कौन विद्या को प्राप्त होने के योग्य होते हैं, इस विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! (यम्) जिसको (देवासः) विद्वान् जन (कामेन) कामना से (कृतम्) किये हुए (तवसम्) बलिष्ठ (स्वञ्चम्) सुन्दरता से जाते हुए अर्थात् शरीर और आत्मा के बल से युक्त युवा मनुष्य को (सूर्यायै) सूर्य के समान शुभ गुण और स्वभावों से प्रकाशित कन्या के लिये (अददुः) देते हैं वह (सुबन्धुः) सुन्दर भ्राता वा मित्रोंवाला (मघवा) बहुत ऐश्वर्य्ययुक्त (दस्मवर्चाः) नष्ट होते हुए पदार्थों में प्रकाश रखनेवाला (पूषा) भूमि के समान पुष्ट वा पुष्टि करनेवाला (दिवः) बिजुली और (पृथिव्याः) भूमि तथा (इळः) वाणी का (पतिः) स्वामी होता हुआ सुख को (आ) ग्रहण करता है ॥४॥
Connotation: - जो ब्रह्मचर्य्य से पूर्ण युवावस्था को प्राप्त हुए अपने सदृश बहुओं को प्राप्त होकर ऋतुगामी अर्थात् ऋतुकाल में स्त्रीभोग करनेवाले होकर सुन्दर पुष्ट अङ्ग और बुद्धि बल विद्या और शिक्षा को प्राप्त हों, वे ही भूगर्भ वा विद्युदादि विद्या को प्राप्त हो सकते हैं और क्षुद्राशय नहीं ॥४॥ इस सूक्त में विद्वानों के कृत्य का वर्णन होने से इस सूक्त के अर्थ की इससे पूर्व सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति जाननी चाहिये ॥ यह अट्ठावनवाँ सूक्त और चौबीसवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनः के विद्यां प्राप्तुमर्हन्तीत्याह ॥

Anvay:

हे मनुष्या ! यं देवासः कामेन कृतं तवसं स्वञ्चं युवानं नरं सूर्याया अददुः स सुबन्धुर्मघवा दस्मवर्चाः पूषा दिवः पृथिव्या इळस्पतिः सन् सुखमादत्ते ॥४॥

Word-Meaning: - (पूषा) भूमिवत्पुष्टः पुष्टिकर्त्ता वा (सुबन्धुः) शोभना बन्धवो भ्रातरः सखायो वा यस्य (दिवः) विद्युतः (आ) (पृथिव्याः) भूमेः (इळः) वाचः (पतिः) स्वामी (मघवा) बह्वैश्वर्यः (दस्मवर्चाः) दस्मेषूपक्षयेषु वर्चः प्रदीपनं यस्य सः (यम्) (देवासः) विद्वांसः (अददुः) ददति (सूर्यायै) सूर्यवत् शुभगुणस्वभावप्रकाशितायै कन्यायै (कामेन) (कृतम्) निष्पन्नम् (तवसम्) बलिष्ठम् (स्वञ्चम्) सुष्ठ्वञ्चन्तं प्राप्तशरीरात्मबलेन युक्तम् ॥४॥
Connotation: - ये ब्रह्मचर्येण पूर्णयुवावस्थां प्राप्ताः स्वसदृशीर्वधूः प्राप्यर्त्तुगामिनो भूत्वा सुदृढाङ्गा बुद्धिबलविद्याशिक्षाप्राप्ता भवेयुस्त एव भूगर्भविद्युदादिविद्यां प्राप्तुं शक्नुवन्ति नेतरे क्षुद्राशया इति ॥४॥ अत्र विद्वत्कृत्यवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्वेद्या ॥ इत्यष्टपञ्चाशत्तमं सूक्तं चतुर्विंशो वर्गश्च समाप्तः ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जे ब्रह्मचर्याने पूर्ण युवावस्था प्राप्त करून आपल्यासारख्याच स्त्रीशी विवाह करून ऋतुगामी बनून सुदृढ अंग, बुद्धिबल, विद्या व शिक्षण प्राप्त करून भूगर्भ विद्युत इत्यादी विद्या प्राप्त करू शकतात तसे इतर क्षुद्र लोक प्राप्त करू शकत नाहीत. ॥ ४ ॥