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वेद॒ यस्त्रीणि॑ वि॒दथा॑न्येषां दे॒वानां॒ जन्म॑ सनु॒तरा च॒ विप्रः॑। ऋ॒जु मर्ते॑षु वृजि॒ना च॒ पश्य॑न्न॒भि च॑ष्टे॒ सूरो॑ अ॒र्य एवा॑न् ॥२॥

English Transliteration

veda yas trīṇi vidathāny eṣāṁ devānāṁ janma sanutar ā ca vipraḥ | ṛju marteṣu vṛjinā ca paśyann abhi caṣṭe sūro arya evān ||

Pad Path

वेद॑। यः। त्रीणि॑। वि॒दथा॑नि। ए॒षा॒म्। दे॒वाना॑म्। जन्म॑। स॒नु॒तः। आ। च॒। विप्रः॑। ऋ॒जु। मर्ते॑षु। वृ॒जि॒ना। च॒। पश्य॑न्। अ॒भि। च॒ष्टे॒। सूरः॑। अ॒र्यः। एवा॑न् ॥२॥

Rigveda » Mandal:6» Sukta:51» Mantra:2 | Ashtak:4» Adhyay:8» Varga:11» Mantra:2 | Mandal:6» Anuvak:5» Mantra:2


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर मेधावी जन क्या जानें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - (यः) जो (अर्यः) स्वामी (विप्रः) बुद्धिमान् (सूरः) सूर्य के समान (एवान्) प्राप्त होने योग्य पदार्थों के तुल्य (एषाम्) इन (देवानाम्) विद्वानों के (सनुतः) सर्वदा (जन्म) उत्पन्न होनेवाला (त्रीणि) तीन (विदथानि) जानने के योग्य कर्म, उपासना और ज्ञानों को (मर्त्तेषु) मनुष्यों में (वृजिना) बलों और (ऋजु, च) सरल व्यवहार को (पश्यन्) देखता हुआ (अभि, आ, चष्टे) सब ओर से प्रकाशित करता है, वह (च) भी इन उक्त पदार्थों को (वेद) जानता है ॥२॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो मनुष्य मनुष्यों के विद्याजन्म को जानते हैं, वे मनुष्यों में पूर्ण शरीर और आत्मा के बल को पाय सब पदार्थों के जानने योग्य होते हैं, जो कर्म उपासना और ज्ञानों को प्राप्त होते हैं, वे स्वामी होते हैं ॥२॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनर्मेधाविनः किं जानीयुरित्याह ॥

Anvay:

योऽर्यो विप्रः सूर एवानिवैषां देवानां सनुतर्जन्म त्रीणि विदथानि मर्त्तेषु वृजिना ऋजु च पश्यन्नभ्याचष्टे स चैतान् वेद ॥२॥

Word-Meaning: - (वेद) जानाति (यः) (त्रीणि) (विदथानि) वेदितुं योग्यानि कर्मोपासनाज्ञानानि (एषाम्) (देवानाम्) विदुषाम् (जन्म) प्रादुर्भावम् (सनुतः) सदा (आ) (च) (विपः) मेधावी (ऋजु) सरलम् (मर्त्तेषु) मनुष्येषु (वृजिना) बलानि (च) (पश्यन्) (अभि) (चष्टे) प्रकाशयति (सूरः) सूर्य्य इव (अर्यः) स्वामी (एवान्) प्राप्तव्यान् ॥२॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। ये मनुष्या मनुष्याणां विद्याजन्म जानन्ति ते मनुष्येषु पूर्णं शरीरात्मबलं प्राप्य सर्वान् पदार्थान् वेत्तुमर्हन्ति ये कर्मोपासनाज्ञानानि प्राप्नुवन्ति ते स्वामिनो भवन्ति ॥२॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जी माणसे माणसांचा विद्याजन्म जाणतात ती पूर्ण शरीर व आत्म्याचे बळ प्राप्त करून सर्व पदार्थांना यथायोग्य जाणू शकतात. जे ज्ञान, कर्म, उपासना करतात ते स्वामी होतात. ॥ २ ॥