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आ नो॑ दे॒वः स॑वि॒ता त्राय॑माणो॒ हिर॑ण्यपाणिर्यज॒तो ज॑गम्यात्। यो दत्र॑वाँ उ॒षसो॒ न प्रती॑कं व्यूर्णु॒ते दा॒शुषे॒ वार्या॑णि ॥८॥

English Transliteration

ā no devaḥ savitā trāyamāṇo hiraṇyapāṇir yajato jagamyāt | yo datravām̐ uṣaso na pratīkaṁ vyūrṇute dāśuṣe vāryāṇi ||

Pad Path

आ। नः॒। दे॒वः। स॒वि॒ता। त्राय॑माणः। हिर॑ण्यऽपाणिः। य॒ज॒तः। ज॒ग॒म्या॒त्। यः। दत्र॑ऽवान्। उ॒षसः॑। न। प्रती॑कम्। वि॒ऽऊ॒र्णु॒ते। दा॒शुषे॑। वार्या॑णि ॥८॥

Rigveda » Mandal:6» Sukta:50» Mantra:8 | Ashtak:4» Adhyay:8» Varga:9» Mantra:3 | Mandal:6» Anuvak:5» Mantra:8


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर विद्वान् जन क्या करें, इस विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! (यः) जो (दत्रवान्) दान देनेवाला (हिरण्यपाणिः) हाथ में सुवर्णादि लिये हुए और (यजतः) सङ्ग करनेवाला (देवः) दिव्यगुण, कर्म, स्वभावयुक्त (सविता) सूर्य के तुल्य (त्रायमाणः) रक्षक जन (उषसः) प्रभातवेला के (न) समान समय से (दाशुषे) देनेवाले के लिये (प्रतीकम्) प्रतीति करनेवाले पदार्थ और (वार्याणि) स्वीकार करने योग्य पदार्थों को (व्यूर्णुते) आच्छादित करता है तथा (नः) हम लोगों को (आ, जगम्यात्) सब ओर से निरन्तर प्राप्त हो, उसको हम लोग सदा सुखी करें ॥८॥
Connotation: - हे मनुष्यो ! जो दानशील प्रभातवेला के समान सुन्दर प्रकाश करनेवाले जन सब के लिये विद्या और अभयदान देते हैं, वे संसार में श्रेष्ठ गिने जाते हैं ॥८॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनर्विद्वांसः किं कुर्य्युरित्याह ॥

Anvay:

हे मनुष्या ! यो दत्रवान् हिरण्यपाणिर्यजतो देवः सविता त्रायमाण उषसो न समयाद्दाशुषे प्रतीकं वार्याणि च व्यूर्णुते नोऽस्मानाऽऽजगम्यात्तं वयं सदा सुखयेम ॥८॥

Word-Meaning: - (आ) (नः) अस्मान् (देवः) दिव्यगुणकर्मस्वभावः (सविता) सूर्य इव (त्रायमाणः) रक्षकः (हिरण्यपाणिः) हिरण्यं सुवर्णादिकं पाणौ हस्ते यस्य सः (यजतः) सङ्गन्ता (जगम्यात्) भृशं प्राप्नुयात् (यः) (दत्रवान्) दानवान् (उषसः) प्रभातवेलायाः (न) इव (प्रतीकम्) प्रतीतिकरम् (व्यूर्णुते) आच्छादयति (दाशुषे) दात्रे (वार्याणि) स्वीकर्त्तुमर्हाणि वस्तूनि ॥८॥
Connotation: - हे मनुष्या ! ये दानशीलाः प्रभातवेलावत्सुप्रकाशकाः सर्वेभ्यो विद्याऽभयदाने प्रयच्छन्ति ते जगति वरा गण्यन्ते ॥८॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - हे माणसांनो ! जी दानी व उषःकालाप्रमाणे चांगला प्रकाश देणारी माणसे सर्वांना अभयदान देतात ती जगात श्रेष्ठ समजली जातात. ॥ ८ ॥