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स॒कृद्ध॒ द्यौर॑जायत स॒कृद्भूमि॑रजायत। पृश्न्या॑ दु॒ग्धं स॒कृत्पय॒स्तद॒न्यो नानु॑ जायते ॥२२॥

English Transliteration

sakṛd dha dyaur ajāyata sakṛd bhūmir ajāyata | pṛśnyā dugdhaṁ sakṛt payas tad anyo nānu jāyate ||

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Pad Path

स॒कृत्। ह॒। द्यौः। अ॒जा॒य॒त॒। स॒कृत्। भूमिः॑। अ॒जा॒य॒त॒। पृश्न्याः॑। दु॒ग्धम्। स॒कृत्। पयः॑। तत्। अ॒न्यः। न। अनु॑। जा॒य॒ते॒ ॥२२॥

Rigveda » Mandal:6» Sukta:48» Mantra:22 | Ashtak:4» Adhyay:8» Varga:4» Mantra:6 | Mandal:6» Anuvak:4» Mantra:22


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब प्रजा के कृत्य को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! जैसे (ह) निश्चय के साथ (द्यौः) सूर्य (सकृत्) एकवार (अजायत) उत्पन्न होता है तथा (भूमिः) भूमि (सकृत्) एकवार (अजायत) उत्पन्न होती है और (पृश्न्याः) अन्तरिक्ष में उत्पन्न होनेवाली सृष्टियाँ (सकृत्) एकवार उत्पन्न होती हैं तथा (दुग्धम्) दूध और (पयः) जल एकवार उत्पन्न होता है (तत्) उससे (अन्यः) और (न) नहीं (अनु, जायते) अनुकरण करता, वैसे तुम जानो ॥२२॥
Connotation: - हे विद्वानो ! जिस ईश्वर ने सूर्य आदि जगत् एकवार उत्पन्न किया, वह इस सृष्टि के साथ नहीं उत्पन्न होता, किन्तु इस सृष्टि से भिन्न अर्थात् भेद को प्राप्त होकर सबको शीघ्र उत्पन्न करता है, उसी का ध्यान तुम लोग करो ॥२२॥ इस सूक्त में अग्नि, मरुत्, पूषा, पृश्नि, सूर्य, भूमि, विद्वान्, राजा और प्रजा के कृत्य का वर्णन होने से इस सूक्त के अर्थ की इससे पूर्व सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति जाननी चाहिये ॥ यह अड़तालीसवाँ सूक्त और चतुर्थ वर्ग समाप्त हुआ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ प्रजाकृत्यमाह ॥

Anvay:

हे मनुष्या ! यथा ह द्यौः सकृदजायत भूमिः सकृदजायत पृश्न्याः सकृज्जायन्ते दुग्धं पयश्च सकृज्जायते तदन्यो नानु जायते तथैव यूयं विजानीत ॥२२॥

Word-Meaning: - (सकृत्) एकवारम् (ह) खलु (द्यौः) सूर्यः (अजायत) जायते (सकृत्) एकवारम् (भूमिः) (अजायत) जायते (पृश्न्याः) अन्तरिक्षे भवाः सृष्टयः (दुग्धम्) (सकृत्) (पयः) उदकम् (तत्) तस्मात् (अन्यः) भिन्नः (न) (अनु) (जायते) ॥२२॥
Connotation: - हे विद्वांसो ! येनेश्वरेण सूर्यादिकं जगद्युगपदुत्पाद्यते स एतया सृष्ट्या सह न जायतेऽस्या भिन्नः सन् सर्वं सद्यो जनयति तमेव यूयं ध्यायतेति ॥२२॥ अत्राग्निमरुत्पूषन्पृश्निसूर्य्यभूमिविद्वद्राजप्रजाकृत्यवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्वेद्या ॥ इत्यष्टचत्वारिंशत्तमं सूक्तं चतुर्थो वर्गश्च समाप्तः ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - हे विद्वानांनो ! ज्या ईश्वराने सूर्य इत्यादी जग उत्पन्न केलेले आहे ते सृष्टीबरोबर एकदाच उत्पन्न होत नाही, तर वेगवेगळ्या भेदाने उत्पन्न होते, हे तुम्ही जाणा. ॥ २२ ॥