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स त्वं न॑श्चित्र वज्रहस्त धृष्णु॒या म॒हः स्त॑वा॒नो अ॑द्रिवः। गामश्वं॑ र॒थ्य॑मिन्द्र॒ सं कि॑र स॒त्रा वाजं॒ न जि॒ग्युषे॑ ॥२॥

English Transliteration

sa tvaṁ naś citra vajrahasta dhṛṣṇuyā mahaḥ stavāno adrivaḥ | gām aśvaṁ rathyam indra saṁ kira satrā vājaṁ na jigyuṣe ||

Pad Path

सः। त्वम्। नः॒। चि॒त्र॒। व॒ज्र॒ऽह॒स्त॒। धृ॒ष्णु॒ऽया। म॒हः। स्त॒वा॒नः। अ॒द्रि॒ऽवः॒। गाम्। अश्व॑म्। र॒थ्य॑म्। इ॒न्द्र॒। सम्। कि॒र॒। स॒त्रा। वाज॑म्। न। जि॒ग्युषे॑ ॥२॥

Rigveda » Mandal:6» Sukta:46» Mantra:2 | Ashtak:4» Adhyay:7» Varga:27» Mantra:2 | Mandal:6» Anuvak:4» Mantra:2


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर मनुष्य शिल्पविद्या से क्या पाते हैं, इस विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (अद्रिवः) मेघ से युक्त सूर्य्य के समान वर्त्तमान (चित्र) अद्भुत विद्यावाले (वज्रहस्त) हाथ में शस्त्र और अस्त्र को धारण किये हुए (इन्द्र) ऐश्वर्य्य से युक्त ! (सः) वह (त्वम्) आप (धृष्णुया) निश्चयपने वा ढिठाई से (महः) बड़े की (स्तवानः) प्रशंसा करते हुए (सत्रा) सत्य विज्ञान से (वाजम्) सङ्ग्राम को (न) जैसे वैसे (जिग्युषे) जीतनेवाले (नः) हम लोगों के लिये (गाम्) गौ को (रथ्यम्) और वाहन के लिये हितकारक (अश्वम्) घोड़ों को (सम्, किर) सङ्कीर्ण करो, इकट्ठा करो ॥२॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। हे राजा आदि मनुष्यो ! जैसे जीतनेवाले योद्धा जन सङ्ग्राम में विजय को प्राप्त होकर धन और प्रतिष्ठा को प्राप्त होते हैं, वैसे ही शिल्पविद्या में चतुर जन बड़े ऐश्वर्य्य को प्राप्त होते हैं ॥२॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनर्मनुष्याः शिल्पविद्यया किं लभन्त इत्याह ॥

Anvay:

हे अद्रिवश्चित्र वज्रहस्तेन्द्र ! स त्वं धृष्णुया महः स्तवानः सत्रा वाजं न जिग्युषे नोऽस्मभ्यं गां रथ्यमश्वं सङ्किर ॥२॥

Word-Meaning: - (सः) (त्वम्) (नः) अस्मभ्यम् (चित्र) अद्भुतविद्य (वज्रहस्त) शस्त्रास्त्रपाणे (धृष्णुया) दृढत्वेन प्रागल्भ्येन वा (महः) महत् (स्तवानः) प्रशंसन् (अद्रिवः) मेघयुक्तसूर्यवद्वर्तमान (गाम्) धेनुम् (अश्वम्) तुरङ्गम् (रथ्यम्) रथाय हितम् (इन्द्र) (सम्) (किर) विक्षिप (सत्रा) सत्येन विज्ञानेन (वाजम्) सङ्ग्रामम् (न) इव (जिग्युषे) जेतुं शीलाय ॥२॥
Connotation: - अत्रोपमालङ्कारः। हे राजादयो मनुष्या यथा जयशीला योद्धारः सङ्ग्रामे विजयं प्राप्य धनं प्रतिष्ठां च लभन्ते तथैव शिल्पविद्याकुशला महदैश्वर्यं प्राप्नुवन्ति ॥२॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. हे राजा इत्यादी लोकांनो, जसे जिंकणारे योद्धे युद्धात विजय प्राप्त करून धन व प्रतिष्ठा प्राप्त करतात, तसेच शिल्पविद्येत चतुर लोक खूप ऐश्वर्य प्राप्त करतात. ॥ २ ॥