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दि॒वो न यस्य॑ विध॒तो नवी॑नो॒द्वृषा॑ रु॒क्ष ओष॑धीषु नूनोत्। घृणा॒ न यो ध्रज॑सा॒ पत्म॑ना॒ यन्ना रोद॑सी॒ वसु॑ना॒ दं सु॒पत्नी॑ ॥७॥

English Transliteration

divo na yasya vidhato navīnod vṛṣā rukṣa oṣadhīṣu nūnot | ghṛṇā na yo dhrajasā patmanā yann ā rodasī vasunā daṁ supatnī ||

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Pad Path

दि॒वः। न। यस्य॑। वि॒ध॒तः। नवी॑नोत्। वृषा॑। रु॒क्षः। ओष॑धीषु। नू॒नो॒त्। घृणा॑। न। यः। ध्रज॑सा। पत्म॑ना। यन्। आ। रोद॑सी॒ इति॑। वसु॑ना। दम्। सु॒पत्नी॒ इति॑ सु॒ऽपत्नी॑ ॥७॥

Rigveda » Mandal:6» Sukta:3» Mantra:7 | Ashtak:4» Adhyay:5» Varga:4» Mantra:2 | Mandal:6» Anuvak:1» Mantra:7


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर वह कैसा है, इस विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - (यस्य) जिस वैद्य के (दिवः) प्रकाश का (न) जैसे वैसे (विधतः) विधान करते हुए का (वृषा) बलिष्ठ (रुक्षः) तेजस्वी जन (नवीनोत्) अत्यन्त स्तुति युक्त होता है तथा (ओषधीषु) ओषधियों के निमित्त (नूनोत्) अत्यन्त स्तुति करता है और (यः) जो (घृणा) दीप्ति (न) जैसे वैसे (ध्रजसा) गमन और (पत्मना) उद्गमन से (वसुना) और धन से (सुपत्नी) सुन्दर स्वामीवाली (रोदसी) अन्तरिक्ष और पृथिवी को (यन्) प्राप्त होनेवाला वह (दम्) इन्द्रियों के निग्रह करनेवाले की (आ) सब ओर से अत्यन्त स्तुति करता है, वह अग्नि सब से जानने के योग्य है ॥७॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है । जो अग्नि पृथिवी आदिकों में पूर्ण हुआ घिसने आदि से प्रकाशित होवे, वह मनुष्यों के अनेक प्रकार के कार्य्यों को करनेवाला होता है ॥७॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनः स कीदृश इत्याह ॥

Anvay:

यस्य दिवो न विधतो वृषा रुक्षो नवीनोदोषधीषु नूनोद्यो घृणा न ध्रजसा पत्मना वसुना सुपत्नी रोदसी यन्दमाऽऽनूनोत् सोऽग्निः सर्वैर्वेदितव्यः ॥७॥

Word-Meaning: - (दिवः) प्रकाशस्य (न) इव (यस्य) वैद्यस्य (विधतः) विधानं कुर्वतः (नवीनोत्) भृशं स्तुतीभवति (वृषा) बलिष्ठः (रुक्षः) तेजस्वी (ओषधीषु) (नूनोत्) भृशं स्तौति (घृणा) दीप्तिः (न) इव (यः) (ध्रजसा) गमनेन (पत्मना) उद्गमनेन (यन्) य एति (आ) समन्तात् (रोदसी) द्यावापृथिव्यौ (वसुना) धनेन (दम्) यो दमयति तम् (सुपत्नी) शोभनः पतिर्ययोस्ते ॥७॥
Connotation: - अत्रोपमालङ्कारः । योऽग्निः पृथिव्यादिषु पूर्णो घर्षणादिना प्रकाश्येत स मनुष्याणामनेकविधकार्य्यकारी भवति ॥७॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जो अग्नी पृथ्वीत पूर्ण भरलेला असून घर्षणाने प्रकाशित होतो तो माणसांचे अनेक कार्य करतो. ॥ ७ ॥