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व॒यं ते॑ अ॒स्यामि॑न्द्र द्यु॒म्नहू॑तौ॒ सखा॑यः स्याम महिन॒ प्रेष्ठाः॑। प्रात॑र्दनिः क्षत्र॒श्रीर॑स्तु॒ श्रेष्ठो॑ घ॒ने वृ॒त्राणां॑ स॒नये॒ धना॑नाम् ॥८॥

English Transliteration

vayaṁ te asyām indra dyumnahūtau sakhāyaḥ syāma mahina preṣṭhāḥ | prātardaniḥ kṣatraśrīr astu śreṣṭho ghane vṛtrāṇāṁ sanaye dhanānām ||

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Pad Path

व॒यम्। ते॒। अ॒स्याम्। इ॒न्द्र॒। द्यु॒म्नऽहू॑तौ। सखा॑यः। स्या॒म॒। म॒हि॒न॒। प्रेष्ठाः॑। प्रात॑र्दनिः। क्ष॒त्र॒ऽश्रीः। अ॒स्तु॒। श्रेष्ठः॑। घ॒ने। वृ॒त्राणा॑म्। स॒नये॑। धना॑नाम् ॥८॥

Rigveda » Mandal:6» Sukta:26» Mantra:8 | Ashtak:4» Adhyay:6» Varga:22» Mantra:3 | Mandal:6» Anuvak:3» Mantra:8


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (महिन) बड़े श्रेष्ठ (इन्द्र) सब के सुख देनेवाले ! (वयम्) हम लोग (ते) आपकी (अस्याम्) इस (द्युम्नहूतौ) धन वा यश से आह्वान जिसमें उसमें (प्रेष्ठाः) अतिशय प्रिय (सखायः) मित्र (स्याम) होवें और आप (प्रातर्दनिः) प्रातःकाल में देना जिनका वह (वृत्राणाम्) धर्म के आवरण करनेवालों के (घने) नाश करने में (धनानाम्) धनों के (सनये) विभाग के लिये (श्रेष्ठः) अत्यन्त प्रशंसनीय (क्षत्रश्रीः) राज्यलक्ष्मीवान् (अस्तु) होवें ॥८॥
Connotation: - जो राजा गुणग्राही, पुरुषार्थी, श्रेष्ठ जनों का पालन करने और दुष्ट जनों का निवारण करनेवाला तथा सबका मित्र होवे, उसके साथ सज्जनों को चाहिये कि मित्रता करें ॥८॥ इस सूक्त में इन्द्र, परीक्षक, श्रेष्ठ, राजा और प्रजा के कृत्य का वर्णन होने से इस सूक्त के अर्थ की इससे पूर्व सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति जाननी चाहिये ॥ यह छब्बीसवाँ सूक्त और बाईसवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

Anvay:

हे महिनेन्द्र ! वयं तेऽस्यां द्युम्नहूतौ प्रेष्ठाः सखायः स्याम। भवान् प्रातर्दनिर्वृत्राणां घने धनानां सनये श्रेष्ठः क्षत्रश्रीरस्तु ॥८॥

Word-Meaning: - (वयम्) (ते) तव (अस्याम्) (इन्द्र) सर्वसुखप्रद (द्युम्नहूतौ) द्युम्नेन धनेन यशसा वा हूतिराह्वानं यस्यां तस्याम् (सखायः) (स्याम) (महिन) महत्तम (प्रेष्ठाः) अतिशयेन प्रियाः (प्रातर्दनिः) प्रातःकाले दनिर्दानं यस्य (क्षत्रश्रीः) राज्यलक्ष्मीः (अस्तु) (श्रेष्ठः) अतिशयेन प्रशस्तः (घने) हनने (वृत्राणाम्) धर्मावरकाणाम् (सनये) विभागाय (धनानाम्) ॥८॥
Connotation: - यो राजा गुणग्राही पुरुषार्थी श्रेष्ठानां पालको दुष्टानां निवर्त्तकः सर्वस्य मित्रं स्यात्तेन सह सज्जनैः सख्यं विधेयमिति ॥८॥ अत्रेन्द्रपरीक्षकसभ्यराजप्रजाकृत्यर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्वेद्या ॥ इति षड्विंशं सूक्तं द्वाविंशो वर्गश्च समाप्तः ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जो राजा गुणग्राही, पुरुषार्थी, श्रेष्ठांचा पालक व दुष्टांचा निवारक असून सर्वांचा मित्र असेल तर त्याच्याबरोबर सज्जनांनी मैत्री करावी.