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पिबा॒ सोम॑म॒भि यमु॑ग्र॒ तर्द॑ ऊ॒र्वं गव्यं॒ महि॑ गृणा॒न इ॑न्द्र। वि यो धृ॑ष्णो॒ वधि॑षो वज्रहस्त॒ विश्वा॑ वृ॒त्रम॑मि॒त्रिया॒ शवो॑भिः ॥१॥

English Transliteration

pibā somam abhi yam ugra tarda ūrvaṁ gavyam mahi gṛṇāna indra | vi yo dhṛṣṇo vadhiṣo vajrahasta viśvā vṛtram amitriyā śavobhiḥ ||

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Pad Path

पिब॑। सोम॑म्। अ॒भि। यम्। उ॒ग्र॒। तर्दः॑। ऊ॒र्वम्। गव्य॑म्। महि॑। गृ॒णा॒नः। इ॒न्द्र॒। वि। यः। धृ॒ष्णो॒ इति॑। वधि॑षः। व॒ज्र॒ऽह॒स्त॒। विश्वा॑। वृ॒त्रम्। अ॒मि॒त्रिया॑। शवः॑ऽभिः ॥१॥

Rigveda » Mandal:6» Sukta:17» Mantra:1 | Ashtak:4» Adhyay:6» Varga:1» Mantra:1 | Mandal:6» Anuvak:2» Mantra:1


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब चतुर्थ अष्टक में छठे अध्याय और छठे मण्डल में पन्द्रह ऋचावाले सत्रहवें सूक्त का प्रारम्भ है, उसके प्रथम मन्त्र में फिर मनुष्यों को क्या करना चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (व्रजहस्त) शस्त्र है हस्त में जिनके ऐसे (धृष्णो) अत्यन्त दृढ़ (इन्द्र) अत्यन्त ऐश्वर्य की इच्छा करनेवाले ! (यः) जो (शवोभिः) बलों से (वृत्रम्) मेघों को सूर्य्य जैसे वैसे (विश्वा) सम्पूर्ण (अमित्रिया) शत्रुओं को आप (वि) विशेष करके (वधिषः) नाश करिये और हे (उग्र) तेजस्विन् (महि) बड़े (गव्यम्) गौओं के घृत की (गृणानः) स्तुति करते हुए (यम्) जिस (ऊर्वम्) हिंसा करने योग्य की (अभि) (तर्दः) हिंसा करिये, उसके सम्बन्ध में वह आप (सोमम्) महौषधि के रस (पिबा) पीजिये ॥१॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो मनुष्य ब्रह्मचर्य्य, विद्या और सत्कर्म्म से दुष्टों को दूर करके श्रेष्ठों को स्वीकार करते हैं, वे शत्रुओं का नाश करते हैं ॥१॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनर्म्मनुष्यैः किं कर्त्तव्यमित्याह ॥

Anvay:

हे वज्रहस्त धृष्णो इन्द्र ! यः शवोभिर्वृत्रं सूर्य्य इव विश्वाऽमित्रिया त्वं वि वधिषः। हे उग्र ! महि गव्यं गृणानो यमूर्वमभि तर्दस्तत्सम्बन्धे स त्वं सोमं पिबा ॥१॥

Word-Meaning: - (पिबा) अत्र द्व्यचोऽतस्तिङ इति दीर्घः (सोमम्) महौषधिरसम् (अभि) (यम्) (उग्र) तेजस्विन् (तर्दः) (ऊर्वम्) हिंस्यम् (गव्यम्) गवामिदम् (महि) महत् (गृणानः) स्तुवन् (इन्द्र) परमैश्वर्यमिच्छो (वि) (यः) (धृष्णो) प्रगल्भ (वधिषः) हन्याः (वज्रहस्त) शस्त्रपाणे (विश्वा) सर्वाणि (वृत्रम्) मेघम् (अमित्रिया) अमित्राणि (शवोभिः) बलैः ॥१॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। ये मनुष्या ब्रह्मचर्य्येण विद्यया सत्कर्म्मणा दुष्टान्निवार्य्य श्रेष्ठान् स्वीकुर्वन्ति ते शत्रून् घ्नन्ति ॥१॥
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MATA SAVITA JOSHI

या सूक्तात अग्नी, विद्वान, राजा, मंत्री व प्रजेच्या कृत्याचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची पूर्व सूक्तार्थाबरोबर संगती जाणावी.

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जी माणसे ब्रह्मचर्य, विद्या, सत्कर्म यांच्याद्वारे दुष्टांना दूर करून श्रेष्ठांचा सत्कार करतात ती शत्रूंचा नाश करतात. ॥ १ ॥