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ए॒षा शु॒भ्रा न त॒न्वो॑ विदा॒नोर्ध्वेव॑ स्ना॒ती दृ॒शये॑ नो अस्थात्। अप॒ द्वेषो॒ बाध॑माना॒ तमां॑स्यु॒षा दि॒वो दु॑हि॒ता ज्योति॒षागा॑त् ॥५॥

English Transliteration

eṣā śubhrā na tanvo vidānordhveva snātī dṛśaye no asthāt | apa dveṣo bādhamānā tamāṁsy uṣā divo duhitā jyotiṣāgāt ||

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Pad Path

ए॒षा। शु॒भ्रा। न। त॒न्वः॑। वि॒दा॒ना। ऊ॒र्ध्वाऽइ॑व। स्ना॒ती। दृ॒शये॑। नः॒। अ॒स्था॒त्। अप॑। द्वेषः॑। बाध॑माना। तमां॑सि। उ॒षाः। दि॒वः। दु॒हि॒ता। ज्योति॑षा। आ। अ॒गा॒त् ॥५॥

Rigveda » Mandal:5» Sukta:80» Mantra:5 | Ashtak:4» Adhyay:4» Varga:23» Mantra:5 | Mandal:5» Anuvak:6» Mantra:5


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे श्रेष्ठ लक्षणोंवाली स्त्रि ! जैसे (एषा) यह (उषाः) प्रातर्वेला (शुभ्रा) श्वेतवर्णवाली बिजुली के (न) सदृश (तन्वः) शरीरों को (विदाना) जनाती हुई (ऊर्ध्वेव) ऊपर सी स्थित (स्नाती) शुद्ध और (नः) हम लोगों के (दृशये) दर्शन के लिये (अस्थात्) स्थित होती है और (द्वेषः) द्वेष करनेवाले जनों और (तमांसि) रात्रियों को (अप, बाधमाना) निवारण करती हुई (दिवः) सूर्य्य की (दुहिता) कन्या के सदृश वर्त्तमान (ज्योतिषा) प्रकाश से (आ, अगात्) प्राप्त होती है, वैसे तू हो ॥५॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे कुलीन स्त्री जलादिकों और इन्द्रियों के निग्रहों से बाहर और भीतर से शुद्ध, गृहस्थान्धकार को निवृत्त करती हुई, सब के शरीर की रक्षा करती है और गृह के कृत्यों में चतुर है, वैसे ही प्रातर्वेला होती है ॥५॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

Anvay:

हे शुभलक्षणे स्त्रि ! यथैषोषाः शुभ्रा विद्युन्न तन्वो विदानोर्ध्वेव स्नाती नो दृशयेऽस्थाद् द्वेषस्तमांसि चाप बाधमाना दिवो दुहिता ज्योतिषाऽऽगात्तथा त्वं भवेः ॥५॥

Word-Meaning: - (एषा) (शुभ्रा) श्वेतवर्णा (न) इव (तन्वः) शरीराणि (विदाना) ज्ञापयन्ती (ऊर्ध्वेव) ऊर्ध्वेव स्थिता (स्नाती) शुद्धा (दृशये) दर्शनाय (नः) अस्माकम् (अस्थात्) तिष्ठति (अप) (द्वेषः) द्वेष्टॄन् (बाधमाना) निवारयन्ती (तमांसि) रात्रीः (उषाः) प्रातर्वेला (दिवः) सूर्य्यस्य (दुहिता) कन्येव (ज्योतिषा) प्रकाशेन (आ) (अगात्) आगच्छति ॥५॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः । यथा कुलीना स्त्री जलादीन्द्रियसंयमाभ्यां बाह्याऽऽभ्यन्तरे शुद्धा गृहस्थाऽन्धकारं निवारयन्ती सर्वेषां शरीररक्षां विदधाति गृहकृत्येषु दक्षा वर्त्तते तथैवोषा भवति ॥५॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जशी कुलीन स्त्री जल इत्यादींनी इंद्रियांचा निग्रह करून आत व बाहेर शुद्ध होते, गृहस्थाश्रमातील अंधकार नाहीसा करीत सर्वांच्या शरीराचे रक्षण करते व गृहकृत्यात चतुर असते तशीच प्रातर्वेला असते. ॥ ५ ॥