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सु॒तं॒भ॒रो यज॑मानस्य॒ सत्प॑ति॒र्विश्वा॑सा॒मूधः॒ स धि॒यामु॒दञ्च॑नः। भर॑द्धे॒नू रस॑विच्छिश्रिये॒ पयो॑ऽनुब्रुवा॒णो अध्ये॑ति॒ न स्व॒पन् ॥१३॥

English Transliteration

sutambharo yajamānasya satpatir viśvāsām ūdhaḥ sa dhiyām udañcanaḥ | bharad dhenū rasavac chiśriye payo nubruvāṇo adhy eti na svapan ||

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Pad Path

सु॒त॒म्ऽभ॒रः। यज॑मानस्य। सत्ऽप॑तिः। विश्वा॑साम्। ऊधः॑। सः। धि॒याम्। उ॒त्ऽअञ्च॑नः। भर॑त्। धे॒नुः। रस॑ऽवत्। शि॒श्रि॒ये। पयः॑। अ॒नु॒ऽब्रु॒वा॒णः। अधि॑। ए॒ति॒। न। स्व॒पन् ॥१३॥

Rigveda » Mandal:5» Sukta:44» Mantra:13 | Ashtak:4» Adhyay:2» Varga:25» Mantra:3 | Mandal:5» Anuvak:3» Mantra:13


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर विद्वान् क्या करे, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! जो विद्वान् (यजमानस्य) सत्कार करनेवाला (सुतम्भरः) उत्पन्न जगत् को धारण करनेवाला (विश्वासाम्) सम्पूर्ण (धियाम्) प्रज्ञान और कर्म्मों का (उदञ्चनः) उत्कृष्टता को प्राप्त कराने और (ऊधः) ऊपर को पहुँचाने और (सत्पतिः) सत्पुरुषों का पालन करनेवाला (रसवत्) बहुत रस से युक्त (पयः) दुग्ध को जैसे (धेनुः) गौ वैसे विद्या को (भरत्) धारण करता और धर्म्म का (शिश्रिये) आश्रयण करता और (न) न (स्वपन्) शयन करता हुआ अन्यों के प्रति (अनु, ब्रुवाणः) पढ़कर पीछे उपदेश देता हुआ सत्य का (अधि, एति) स्मरण करता है (सः) वही सत्कार करने योग्य है ॥१३॥
Connotation: - वही उत्तम पुरुष है, जो कृतज्ञ और यथार्थवक्ता जनों की सेवा में प्रिय, सम्पूर्ण मनुष्यों के लिये बुद्धि देने और गो के सदृश सत्य उपदेश का वर्षानेवाला और अविद्या आदि क्लेशों से पृथक् वर्त्तमान है, वही सब से मेल करने योग्य है ॥१३॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनर्विद्वान् किं कुर्य्यादित्युपदिश्यते ॥

Anvay:

हे मनुष्या ! यो विद्वान् यजमानस्य सुतम्भरो विश्वासां धियामुदञ्चन ऊधः सत्पती रसवत्पयो धेनुरिव विद्यां भरद्धर्म शिश्रिये न स्वपन्नन्यान् प्रत्यनुब्रुवाणः सत्यस्याध्येति स एव सत्कर्त्तव्योऽस्ति ॥१३॥

Word-Meaning: - (सुतम्भरः) य उत्पन्नं जगद् बिभर्ति (यजमानस्य) सत्कर्त्तुः (सत्पतिः) सत्पुरुषाणां पालकः (विश्वासाम्) सर्वासाम् (ऊधः) ऊर्ध्वं गमयिता (सः) (धियाम्) प्रज्ञानां कर्म्मणां वा (उदञ्चनः) उत्कृष्टतां प्रापकः (भरत्) धरति (धेनुः) (रसवत्) बहुरसयुक्तम् (शिश्रिये) श्रयति (पयः) दुग्धमिव (अनुब्रुवाणः) पठित्वाऽनूपदिशन् (अधि) (एति) स्मरति (न) निषेधे (स्वपन्) शयानः सन् ॥१३॥
Connotation: - स एवोत्तमः पुरुषोऽस्ति यः कृतज्ञ आप्तसेवाप्रियः समग्रमनुष्येभ्यो बुद्धिप्रदो धेनुवत्सत्योपदेशवर्षकोऽविद्यादिक्लेशेभ्यः पृथग्वर्त्तमानोऽस्ति स एव सर्वैः सङ्गन्तव्यः ॥१३॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जो कृतज्ञ, आप्त विद्वानांच्या सेवेत तत्पर, संपूर्ण माणसांना बुद्धी देणारा, गाईच्या दुधाप्रमाणे सत्य उपदेशाचा वर्षाव करणारा, अविद्या इत्यादी क्लेशापासून दूर राहणारा असतो तोच सर्वांचा मेळ घालू शकतो व तोच उत्तम पुरुष असतो. ॥ १३ ॥