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अच्छा॑ म॒ही बृ॑ह॒ती शंत॑मा॒ गीर्दू॒तो न ग॑न्त्व॒श्विना॑ हु॒वध्यै॑। म॒यो॒भुवा॑ स॒रथा या॑तम॒र्वाग्ग॒न्तं नि॒धिं धुर॑मा॒णिर्न नाभि॑म् ॥८॥

English Transliteration

acchā mahī bṛhatī śaṁtamā gīr dūto na gantv aśvinā huvadhyai | mayobhuvā sarathā yātam arvāg gantaṁ nidhiṁ dhuram āṇir na nābhim ||

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Pad Path

अच्छ॑। म॒ही। बृ॒ह॒ती। शम्ऽत॑मा। गीः। दू॒तः। न। ग॒न्तु॒। अ॒श्विना॑। हु॒वध्यै॑। म॒यः॒ऽभुवा॑। स॒ऽरथा॑। आ। या॒त॒म्। अ॒र्वाक्। ग॒न्तम्। नि॒ऽधिम्। धुर॑म्। आ॒णिः। न। नाभि॑म् ॥८॥

Rigveda » Mandal:5» Sukta:43» Mantra:8 | Ashtak:4» Adhyay:2» Varga:21» Mantra:3 | Mandal:5» Anuvak:3» Mantra:8


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विद्वद्विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! जो (बृहती) बड़े ब्रह्म आदि वस्तु को प्रकाश करनेवाली और (शन्तमा) अत्यन्त कल्याणकारिणी (मही) बड़ी (गीः) गाते हैं पदार्थों को जिससे ऐसी वाणी और (मयोभुवा) सुख को उत्पन्न करनेवाले (सरथा) वाहन आदिकों के साथ वर्त्तमान (अश्विना) अध्यापक और उपदेशक जनों को (हुवध्यै) बुलाने को जैसे (दूतः) धार्म्मिक विद्वान् चतुर राजा का दूत (न) वैसे (गन्तु) प्राप्त हूजिये तथा जिससे अध्यापक और उपदेशक जन (नाभिम्) मध्य (धुरम्) वाहन के आधार काष्ठ को (आणिः) कीले के (न) सदृश और (अर्वाक्) सत्य धर्म्म के पीछे (गन्तम्) चलते हुए (निधिम्) द्रव्यपात्र को (अच्छा) उत्तम प्रकार (आ, यातम्) प्राप्त हूजिये, उसको आप लोग प्राप्त होओ ॥८॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है । वे ही मनुष्य हैं जिनको जैसे राजा को दूत वैसे सम्पूर्ण शास्त्रों में प्रवीण वाणी प्राप्त होवे और वे ही भाग्यशाली हैं, जिनको धर्मयुक्त पुरुषार्थ से अतुल ऐश्वर्य्य प्राप्त होवे ॥८॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

Anvay:

हे मनुष्या ! या बृहती शन्तमा मही गीर्मयोभुवा सरथाऽश्विना हुवध्यै दूतो न गन्तु ययाऽश्विना नाभिं धुरमाणिर्नार्वाग्गन्तं निधिमच्छाऽऽयातं तां यूयं प्राप्नुत ॥८॥

Word-Meaning: - (अच्छा) अत्र संहितायामिति दीर्घः। (मही) महती (बृहती) बृहद्ब्रह्मादिवस्तुप्रकाशिका (शन्तमा) अतिशयेन कल्याणकारिणी (गीः) गायन्ति पदार्थान् यया सा (दूतः) धार्म्मिको विद्वान् दक्षो राजदूतः (न) इव (गन्तु) प्राप्नोतु (अश्विना) अध्यापकोपदेशकौ (हुवध्यै) आह्वातुम् (मयोभुवा) सुखं भावुकौ (सरथा) रथादिभिः सह वर्त्तमानौ (आ) (यातम्) गच्छतम् (अर्वाक्) सत्यधर्ममनु (गन्तम्) गच्छन्तम् (निधिम्) (धुरम्) यानाधारकाष्ठम् (आणिः) कीलकम् (न) इव (नाभिम्) मध्यम् ॥८॥
Connotation: - अत्रोपमालङ्कारः । त एव मनुष्या यान् राजानं दूत इव सर्वशास्त्रप्रवीणा वाक् प्राप्नुयात् त एव भाग्यवन्तो यान् धर्म्येण पुरुषार्थेनातुलमैश्वर्य्यमीयात् ॥८॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात उपमालंकार आहे. राजाच्या दूताप्रमाणे ज्यांची वाणी शास्त्रात प्रवीण असते तीच माणसे भाग्यवान असतात व त्यांना धर्मयुक्त पुरुषार्थाने अतुल ऐश्वर्य प्राप्त होते. ॥ ८ ॥