Go To Mantra

आ ते॒ हनू॑ हरिवः शूर॒ शिप्रे॒ रुह॒त्सोमो॒ न पर्व॑तस्य पृ॒ष्ठे। अनु॑ त्वा राज॒न्नर्व॑तो॒ न हि॒न्वन् गी॒र्भिर्म॑देम पुरुहूत॒ विश्वे॑ ॥२॥

English Transliteration

ā te hanū harivaḥ śūra śipre ruhat somo na parvatasya pṛṣṭhe | anu tvā rājann arvato na hinvan gīrbhir madema puruhūta viśve ||

Mantra Audio
Pad Path

आ। ते॒। हनू॒ इति॑। ह॒रि॒ऽवः॒। शू॒र॒। शिप्रे॒ इति॑। रुह॑त्। सोमः॑। न। पर्व॑तस्य। पृ॒ष्ठे। अनु॑। त्वा। रा॒ज॒न्। अर्व॑तः। न। हि॒न्वन्। गीः॒ऽभिः। म॒दे॒म॒। पु॒रु॒ऽहूत॒। विश्वे॑ ॥२॥

Rigveda » Mandal:5» Sukta:36» Mantra:2 | Ashtak:4» Adhyay:2» Varga:7» Mantra:2 | Mandal:5» Anuvak:3» Mantra:2


Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (हरिवः) अच्छे मनुष्यों से युक्त (शूर) शत्रुओं के नाश करनेवाले (पुरुहूत) बहुतों से सत्कार किये गये (राजन्) राजन् ! जिन (ते) आप को (शिप्रे) उत्तम प्रकार शोभित (हनू) मुख और नासिका (गीर्भिः) सत्य से उज्ज्वल वाणियों से (हिन्वन्) चलवाता हुआ (अर्वतः) घोड़ों के (न) सदृश और (पर्वतस्य) पर्वत के (पृष्ठे) ऊपर (सोमः) सोमलता के (न) सदृश व्यवहार (आ, रुहत्) प्रकट होता है उन (त्वा) आप को (विश्वे) सब हम लोग (अनु, मदेम) आनन्दित करें तथा आप हम लोगों को आनन्दित करिये ॥२॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जो राजा सत्सङ्ग करता है, वह पर्वत में सोमलता के सदृश सब ओर से वृद्धि को प्राप्त होता है ॥२॥
Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

Anvay:

हे हरिवः शूर पुरुहूत राजन् ! यस्य ते शिप्रे हनू गीर्भिर्हिन्वन्नर्वतो न पर्वतस्य पृष्ठे सोमो न व्यवहार आ रुहत् तं त्वा विश्वे वयमनु मदेम त्वमस्मानानन्दय ॥२॥

Word-Meaning: - (आ) (ते) तव (हनू) मुखनासिके (हरिवः) प्रशस्तमनुष्ययुक्त (शूर) शत्रूणां हिंसक (शिप्रे) सुशोभिते (रुहत्) रोहति (सोमः) सोमलता (न) इव (पर्वतस्य) शैलस्य (पृष्ठे) उपरि (अनु) (त्वा) त्वाम् (राजन्) (अर्वतः) अश्वान् (न) इव (हिन्वन्) गमयन् (गीर्भिः) सत्योज्ज्वलाभिर्वाग्भिः (मदेम) आनन्देम (पुरुहूत) बहुभिः कृतसत्कार (विश्वे) सर्वे ॥२॥
Connotation: - अत्रोपमालङ्कारः। यो राजा सत्सङ्गं विदधाति स पर्वते सोमलतेव सर्वतो वर्धते ॥२॥
Reads times

MATA SAVITA JOSHI

N/A

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - या मंत्रात उपामलंकार आहे. जो राजा सत्संग करतो तो पर्वतामध्ये सोमलता जशी वाढते. तसा चहूंकडून वाढतो. ॥ २ ॥