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तदिन्नु ते॒ कर॑णं दस्म वि॒प्राहिं॒ यद्घ्नन्नोजो॒ अत्रामि॑मीथाः। शुष्ण॑स्य चि॒त्परि॑ मा॒या अ॑गृभ्णाः प्रपि॒त्वं यन्नप॒ दस्यूँ॑रसेधः ॥७॥

English Transliteration

tad in nu te karaṇaṁ dasma viprāhiṁ yad ghnann ojo atrāmimīthāḥ | śuṣṇasya cit pari māyā agṛbhṇāḥ prapitvaṁ yann apa dasyūm̐r asedhaḥ ||

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Pad Path

तत्। इत्। नु। ते॒। कर॑णम्। द॒स्म॒। वि॒प्र॒। अहि॑म्। यत्। घ्नन्। ओजः॑। अत्र॑। अमि॑मीथाः। शुष्ण॑स्य। चि॒त्। परि॑। मा॒याः। अ॒गृ॒भ्णाः॒। प्र॒ऽपि॒त्वम्। यन्। अप॑। दस्यू॑न्। अ॒से॒धः॒ ॥७॥

Rigveda » Mandal:5» Sukta:31» Mantra:7 | Ashtak:4» Adhyay:1» Varga:30» Mantra:2 | Mandal:5» Anuvak:2» Mantra:7


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (दस्म) उपेक्षा करनेवाले (विप्र) बुद्धिमान् ! आप सूर्य्य (अहिम्) जैसे मेघ को वैसे दोषों को नाश करते हैं (अत्र) वा इस जगत् में (ओजः, यत्) जल के सदृश जो बल को गिराते हैं (तत्) वह (करणम्) साधन जैसे हो, वैसे शत्रु के बल का (घ्नन्) नाश करते हुए इस जगत् में तुम (शुष्णस्य) बल की वृद्धि का (अमिमीथाः) निर्माण करो (चित्) और (मायाः) बुद्धियों का (परि, अगृभ्णाः) सब ओर से ग्रहण करो और (प्रपित्वम्) प्राप्ति को (यन्) प्राप्त होते हुए (दस्यून्) दुष्टों का (अप, असेधः) निवारण करें उन (ते) आपके लिये (नु) तर्क-वितर्क के साथ (इत्) ही सुख प्राप्त होवे ॥७॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है । हे विद्वन् ! जैसे ईश्वर ने सूर्य्य और मेघ का सम्बन्ध रचा, वैसे ही अन्य भी बहुत सम्बन्ध रचे, यह जानना चाहिये ॥७॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

Anvay:

हे दस्म विप्र ! भवान् सूर्योऽहिं हन्ति अत्रौजो यन्निपातयति तत्करणं यथा तथा शत्रुबलं घ्नन्नत्र त्वं शुष्णस्य वृद्धिममिमीथाश्चिदपि मायाः पर्यगृभ्णाः प्रपित्वं यन् दस्यूनपासेधस्तस्मै ते तुभ्यं न्वित् सुखं प्राप्नुयात् ॥७॥

Word-Meaning: - (तत्) (इत्) एव (नु) (ते) तव (करणम्) करोति येन तत् (दस्म) उपक्षेतः (विप्र) मेधाविन् (अहिम्) मेघमिव दोषान् (यत्) (घ्नन्) विनाशयन् (ओजः) जलमिव बलम् (अत्र) अस्मिन् जगति (अमिमीथाः) निर्माणं कुर्याः (शुष्णस्य) बलस्य (चित्) अपि (परि) (मायाः) प्रज्ञाः (अगृभ्णाः) गृहाण (प्रपित्वम्) प्राप्तिम् (यन्) (अप) (दस्यून्) दुष्टान् (असेधः) निवारयतु ॥७॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। हे विद्वन् ! यथेश्वरेण सूर्य्यमेघसम्बन्धो निर्मितस्तथैवान्येऽपि बहवः सम्बन्धा रचिता इति वेद्यम् ॥७॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. हे विद्वाना ! ईश्वराने जसा सूर्य व मेघाचा संबंध उत्पन्न केलेला आहे. तसेच इतरही पुष्कळ संबंध उत्पन्न केलेले आहेत, हे जाणले पाहिजे. ॥ ७ ॥