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अ॒ग्निर्जु॑षत नो॒ गिरो॒ होता॒ यो मानु॑षे॒ष्वा। स य॑क्ष॒द्दैव्यं॒ जन॑म् ॥३॥

English Transliteration

agnir juṣata no giro hotā yo mānuṣeṣv ā | sa yakṣad daivyaṁ janam ||

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Pad Path

अ॒ग्निः। जु॒ष॒त॒। नः॒। गिरः॑। होता॑। यः। मानु॑षेषु। आ। सः। य॒क्ष॒त्। दैव्य॑म्। जन॑म् ॥३॥

Rigveda » Mandal:5» Sukta:13» Mantra:3 | Ashtak:4» Adhyay:1» Varga:5» Mantra:3 | Mandal:5» Anuvak:1» Mantra:3


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे विद्वन् ! (यः) जो (होता) दाता (अग्नि) अग्नि के सदृश तेजस्वी विद्वान् (नः) हम लोगों की (गिरः) वाणियों का (जुषत) सेवन करता है और जैसे (सः) वह (मानुषेषु) मनुष्यों में (दैव्यम्) श्रेष्ठ गुणों में उत्पन्न (जनम्) विद्वान् जन को (आ, यक्षत्) प्राप्त हो वा सत्कार करे, वैसे आप करिये ॥३॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो अग्नि न हो तो कोई भी जीव जिह्वा न चला सके ॥३॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

Anvay:

हे विद्वन् ! यो होता यथाग्निर्नो गिरो जुषत यथा स मानुषेषु दैव्यं जनमा यक्षत्तथा त्वमनुतिष्ठ ॥३॥

Word-Meaning: - (अग्निः) पावक इव विद्वान् (जुषत) जुषते (नः) अस्माकम् (गिरः) वाचः (होता) दाता (यः) मानुषेषु (आ) (सः) (यक्षत्) सङ्गच्छेत् पूजयेद्वा (दैव्यम्) दिव्येषु गुणेषु भवम् (जनम्) विद्वांसम् ॥३॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः । यद्यग्निर्न स्यात्तर्हि कोऽपि जीवो जिह्वां चालयितुं न शक्नुयात् ॥३॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोमापलंकार आहे. जर अग्नी नसेल तर कोणताही माणूस जीभसुद्धा हलवू शकत नाही. ॥ ३ ॥