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द्विर्यं पञ्च॒ जीज॑नन्त्सं॒वसा॑नाः॒ स्वसा॑रो अ॒ग्निं मानु॑षीषु वि॒क्षु। उ॒ष॒र्बुध॑मथ॒र्यो॒३॒॑ न दन्तं॑ शु॒क्रं स्वासं॑ पर॒शुं न ति॒ग्मम् ॥८॥

English Transliteration

dvir yam pañca jījanan saṁvasānāḥ svasāro agnim mānuṣīṣu vikṣu | uṣarbudham atharyo na dantaṁ śukraṁ svāsam paraśuṁ na tigmam ||

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Pad Path

द्विः। यम्। पञ्च॑। जीज॑नन्। स॒म्ऽवसा॑नाः। स्वसा॑रः। अ॒ग्निम्। मानु॑षीषु। वि॒क्षु। उ॒षः॒ऽबुध॑म्। अ॒थ॒र्यः॑। न। दन्त॑म्। शु॒क्रम्। सु॒ऽआस॑म्। प॒र॒शुम्। न। ति॒ग्मम्॥८॥

Rigveda » Mandal:4» Sukta:6» Mantra:8 | Ashtak:3» Adhyay:5» Varga:5» Mantra:3 | Mandal:4» Anuvak:1» Mantra:8


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर विद्वानों के विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - जो विद्वान् लोग (मानुषीषु) मनुष्यसम्बन्धिनी (विक्षु) प्रजाओं में (अग्निम्) अग्नि को (संवसानाः) उत्तम प्रकार आच्छादन करनेवाले जैसे (पञ्च) पाँच (स्वसारः) अंगुलियाँ वा (अथर्यः) नहीं हिंसित स्त्रियाँ (शुक्रम्) शुद्ध (दन्तम्) दाँत और (स्वासम्) सुन्दर मुख को (न) वैसे और जैसे (तिग्मम्) तीव्र (परशुम्) कुठार को (न) वैसे (यम्) जिस (उषर्बुधम्) प्रातःकाल में जाननेवाले को (द्विः) दो बार (जीजनन्) उत्पन्न करते हैं, वे सम्पूर्ण कार्य्य को सिद्ध कर सकें ॥८॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। हे मनुष्यो ! जैसे अङ्गुलियों से सम्पूर्ण कार्य्य सिद्ध होते हैं, वैसे ही रात्रि के पिछले प्रहर में उठ के प्रजाओं के हित को सिद्ध करो। तीक्ष्ण कुठार के सदृश दुःखों को काट के युवावस्था विशिष्ट स्त्रियाँ शुद्ध मुख और दाँत को करतीं, उनके सदृश प्रजाओं को शुद्ध कर और सुख देकर द्विजों को विद्या के जन्म से युक्त करो ॥८॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनर्विद्वद्विषयमाह ॥

Anvay:

ये विद्वांसो मानुषीषु विक्ष्वग्निं संवसानाः पञ्च स्वसारोऽथर्यः शुक्रं दन्तं स्वासं न तिग्मं परशुं न यमुषर्बुधं द्विर्जीजनंस्ते सर्वाणि कार्य्याणि साद्धुं शक्नुयुः ॥८॥

Word-Meaning: - (द्विः) द्विवारम् (यम्) (पञ्च) (जीजनन्) जनयन्ति (संवसानाः) सम्यगाच्छादकाः (स्वसारः) अङ्गुलयः (अग्निम्) (मानुषीषु) मनुष्याणामिमासु (विक्षु) (उषर्बुधम्) य उषसि बुध्यते तम् (अथर्यः) अहिंसिताः स्त्रियः (न) इव (दन्तम्) (शुक्रम्) शुद्धम् (स्वासम्) शोभनं मुखम् (परशुम्) कुठारम् (न) इव (तिग्मम्) तीव्रम् ॥८॥
Connotation: - अत्रोपमालङ्कारः। हे मनुष्या ! यथाऽङ्गुलिभिस्सर्वाणि कर्म्माणि सिध्यन्ति तथैव रात्रेः पश्चिमे याम उत्थाय प्रजानां हितानि साध्नुवन्तु। तीक्ष्णः कुठार इव दुःखानि छित्वा युवतयः शुद्धं मुखं दन्तं कुर्वन्तीव प्रजाः शोधयित्वा सुखं दत्वा द्विजान् विद्याजन्मयुक्तान् सम्पादयन्तु ॥८॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात उपमालंकार आहे. हे माणसांनो! जसे बोटांनी सर्व कार्य सिद्ध होते, तसेच रात्रीच्या चौथ्या प्रहरी उठून प्रजेचे हित सिद्ध करा. तीक्ष्ण कुऱ्हाडीप्रमाणे दुःखाचा नाश करा. युवावस्थेत स्त्रिया मुख व दात स्वच्छ करतात त्याप्रमाणे प्रजेला सुसंस्कृत करून सुख द्या व द्विजांना विद्या द्या. ॥ ८ ॥