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ए॒वा त्वामि॑न्द्र वज्रि॒न्नत्र॒ विश्वे॑ दे॒वासः॑ सु॒हवा॑स॒ ऊमाः॑। म॒हामु॒भे रोद॑सी वृ॒द्धमृ॒ष्वं निरेक॒मिद्वृ॑णते वृत्र॒हत्ये॑ ॥१॥

English Transliteration

evā tvām indra vajrinn atra viśve devāsaḥ suhavāsa ūmāḥ | mahām ubhe rodasī vṛddham ṛṣvaṁ nir ekam id vṛṇate vṛtrahatye ||

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Pad Path

ए॒व। त्वाम्। इ॒न्द्र॒। व॒ज्रि॒न्। अत्र॑। विश्वे॑। दे॒वासः॑। सु॒ऽहवा॑सः। ऊमाः॑। म॒हाम्। उ॒भे इति॑। रोद॑सी॒ इति॑। वृ॒द्धम्। ऋ॒ष्वम्। निः। एक॑म्। इत्। वृ॒ण॒ते॒। वृ॒त्र॒ऽहत्ये॑ ॥१॥

Rigveda » Mandal:4» Sukta:19» Mantra:1 | Ashtak:3» Adhyay:6» Varga:1» Mantra:1 | Mandal:4» Anuvak:2» Mantra:1


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब तृतीयाष्टक में छठे अध्याय का और ग्यारह ऋचावाले उन्नीसवें सूक्त का प्रारम्भ है, उसके प्रथम मन्त्र में इन्द्रपदवाच्य राजगुणों का उपदेश करते हैं ॥१॥

Word-Meaning: - हे (वज्रिन्) प्रशंसित शस्त्र और अस्त्र से युक्त (इन्द्र) शत्रुओं के विदीर्ण करनेहारे (अत्र) इस संसार में जो (ऊमाः) रक्षा आदि करनेवाले (सुहवासः) उत्तम प्रकार पुकारनेवाले (विश्वे) सब (देवासः) विद्वान् लोग (महाम्) बड़े (वृद्धम्) सब से विस्तीर्ण (ऋष्वम्) श्रेष्ठ (एकम्) अद्वितीय (त्वाम्) (त्वाम्) आपको (एवा) ही (वृत्रहत्ये) मेघ के नाश के सदृश शत्रु का नाश जिस संग्राम में उसमें (उभे) दोनों (रोदसी) अन्तरिक्ष और पृथिवी सूर्य्य के सदृश (इत्) ही (निः, वृणते) स्वीकार करते हैं, उन्हीं की आप सेवा करिये ॥१॥
Connotation: - जो विद्वान् लोग अतिश्रेष्ठ गुणवाले राजा को स्वीकार करें, वे ही पूर्ण सुखवाले होते हैं ॥१॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथेन्द्रपदवाच्यराजगुणानाह ॥

Anvay:

हे वज्रिन्निन्द्राऽत्र ये ऊमाः सुहवासो विश्वे देवासो महां वृद्धमृष्वमेकं त्वामेवा वृत्रहत्य उभे रोदसी सूर्य्यमिवेन्निर्वृणते तानेव त्वं सेवस्व ॥१॥

Word-Meaning: - (एवा) अत्र निपातस्य चेति दीर्घः। (त्वाम्) त्वाम् (इन्द्र) शत्रूणां विदारक (वज्रिन्) प्रशंसितशस्त्रास्त्र (अत्र) (विश्वे) सर्वे (देवासः) विद्वांसः (सुहवासः) ये सुष्ठ्वाह्वयन्ति ते (ऊमाः) रक्षणादिकर्त्तारः (महाम्) महान्तम् (उभे) (रोदसी) द्यावापृथिव्यौ (वृद्धम्) सर्वेभ्यो विस्तीर्णम् (ऋष्वम्) श्रेष्ठम् (निः) (एकम्) अद्वितीयम् (इत्) एव (वृणते) स्वीकुर्वन्ति (वृत्रहत्ये) वृत्रस्य हत्या हननमिव शत्रुहननं यस्मिन्त्सङ्ग्रामे तस्मिन् ॥१॥
Connotation: - ये विद्वांसोऽत्युत्तमगुणवन्तं राजानं स्वीकुर्य्युस्त एव पूर्णसुखा भवन्ति ॥१॥
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MATA SAVITA JOSHI

या सूक्तात इंद्र, मेघ, सेना, सेनापती, राजा, प्रजा व विद्वानांचे गुणवर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची पूर्व सूक्तार्थाबरोबर संगती जाणावी.

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - जे विद्वान अति श्रेष्ठ गुणाच्या राजाचा स्वीकार करतात ते पूर्ण सुखी होतात. ॥ १ ॥