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स॒खी॒य॒ताम॑वि॒ता बो॑धि॒ सखा॑ गृणा॒न इ॑न्द्र स्तुव॒ते वयो॑ धाः। व॒यं ह्या ते॑ चकृ॒मा स॒बाध॑ आ॒भिः शमी॑भिर्म॒हय॑न्त इन्द्र ॥१८॥

English Transliteration

sakhīyatām avitā bodhi sakhā gṛṇāna indra stuvate vayo dhāḥ | vayaṁ hy ā te cakṛmā sabādha ābhiḥ śamībhir mahayanta indra ||

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Pad Path

स॒खि॒ऽय॒ताम्। अ॒वि॒ता। बो॒धि॒। सखा॑। गृ॒णा॒नः। इ॒न्द्र॒। स्तु॒व॒ते। वयः॑। धाः॒। व॒यम्। हि। आ। ते॒। च॒कृ॒म। स॒ऽबाधः॑। आ॒भिः। शमी॑भिः। म॒हय॑न्तः। इ॒न्द्र॒ ॥१८॥

Rigveda » Mandal:4» Sukta:17» Mantra:18 | Ashtak:3» Adhyay:5» Varga:24» Mantra:3 | Mandal:4» Anuvak:2» Mantra:18


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब राज्यवर्द्धन प्रकार को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (इन्द्र) अत्यन्त ऐश्वर्य्य के देनेवाले (सखीयताम्) मित्र के सदृश आचरण करते हुए पुरुषों के (सखा) मित्र (अविता) रक्षा करनेवाले (गृणानः) स्तुति करते हुए (स्तुवते) प्रशंसा करनेवाले के लिये (वयः) सुन्दर धन को (धाः) धारण कीजिये। और हे (इन्द्र) सूर्य्य के सदृश विद्या और विनय से प्रकाशित जो (वयम्) हम लोग (हि) ही (ते) आपके लिये (आभिः) इन (शमीभिः) क्रियाओं से (महयन्तः) बड़े के सदृश आचरण करते हुए (वयः) सुन्दर धन को (चकृमा) करें उनको आप (सबाधः) विलोडन के सहित वर्त्तमान होते हुए (आ, बोधि) अच्छे प्रकार जानिये ॥१८॥
Connotation: - हे राजन् ! यदि राज्य बढ़वाने की आप इच्छा करें तो पक्षपात का त्याग करके सब के साथ मित्र के सदृश वर्त्ताव करिये और श्रेष्ठ पुरुषों की रक्षा करते और दुष्ट पुरुषों को दण्ड देते हुए अपने तेज की प्रसिद्धि करिये ॥१८॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ राज्यवर्द्धनप्रकारमाह ॥

Anvay:

हे इन्द्र ! सखीयतां सखाविता गृणानः सन् स्तुवते वयो धाः। हे इन्द्र ! ये वयं हि ते तुभ्यमाभिः शमीभिर्महयन्तस्सन्तो वयश्चकृमा ताँस्त्वं सबाधः सन्नाऽबोधि ॥१८॥

Word-Meaning: - (सखीयताम्) सखेवाचरताम् (अविता) (बोधि) बुध्यस्व (सखा) सुहृत् (गृणानः) स्तुवन् (इन्द्र) परमैश्वर्य्यप्रद (स्तुवते) प्रशंसकाय (वयः) कमनीयं धनम् (धाः) धेहि (वयम्) (हि) (आ) (ते) तव (चकृमा) कुर्य्याम। अत्र संहितायामिति दीर्घः। (सबाधः) बाधेन सह वर्त्तमानः (आभिः) (शमीभिः) क्रियाभिः (महयन्तः) महानिवाचरन्तः (इन्द्र) सूर्य इव विद्याविनयप्रकाशित ॥१८॥
Connotation: - हे राजन् ! यदि वर्धयितुं भवानिच्छेत्तर्हि पक्षपातं विहाय सर्वैः सह मित्रवद्वर्त्तताम्। श्रेष्ठान् रक्षान् दुष्टान् दण्डयन्त्स्वतेजः प्रख्यापयताम् ॥१८॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - हे राजा ! जर राज्य वाढविण्याची इच्छा करशील तर पक्षपाताचा त्याग करून सर्वांबरोबर मित्राप्रमाणे वर्तन कर व श्रेष्ठ पुरुषांचे रक्षण करून दुष्ट लोकांना दंड देत आपले तेज प्रकट कर. ॥ १८ ॥