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अ॒ग्निर्होता॑ नो अध्व॒रे वा॒जी सन्परि॑ णीयते। दे॒वो दे॒वेषु॑ य॒ज्ञियः॑ ॥१॥

English Transliteration

agnir hotā no adhvare vājī san pari ṇīyate | devo deveṣu yajñiyaḥ ||

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Pad Path

अ॒ग्निः। होता॑। नः॒। अ॒ध्व॒रे। वा॒जी। सन्। परि॑। नी॒य॒ते॒। दे॒वः। दे॒वेषु॑। य॒ज्ञियः॑ ॥१॥

Rigveda » Mandal:4» Sukta:15» Mantra:1 | Ashtak:3» Adhyay:5» Varga:15» Mantra:1 | Mandal:4» Anuvak:2» Mantra:1


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब दश ऋचावाले पन्द्रहवें सूक्त का प्रारम्भ है, उसके प्रथम मन्त्र में अग्निविषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! जो (नः) हम लोगों के (अध्वरे) व्यवहार में (अग्निः) अग्नि के सदृश उत्तम गुणों से प्रकाशित (होता) धारण करनेवाला (देवेषु) प्रकाशमानों में (देवः) प्रकाशमान (यज्ञियः) यज्ञ के योग्य (वाजी) बलवान् अश्व के समान (सन्) होता हुआ अग्नि (परि, नीयते) प्राप्त किया जाता है, वह आप लोगों से भी प्राप्त होने योग्य है ॥१॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे अग्नि सूर्य्यरूप से सब व्यवहारों को प्राप्त कराता है, वैसे ही विद्वान् सम्पूर्ण मनोरथों को प्राप्त कराता है ॥१॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथाग्निविषयमाह ॥

Anvay:

हे मनुष्या ! यो नोऽध्वरेऽग्निरिव होता देवेषु देवो यज्ञियो वाजी सन् परिणीयते स युष्माभिरपि प्रापणीयः ॥१॥

Word-Meaning: - (अग्निः) अग्निरिव शुभगुणप्रकाशितः (होता) धर्त्ता (नः) अस्माकम् (अध्वरे) व्यवहारे (वाजी) बलवानश्व इव (सन्) (परि) (नीयते) प्राप्यते (देवः) द्योतमानः (देवेषु) द्योतमानेषु (यज्ञियः) यो यज्ञमर्हति सः ॥१॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथाऽग्निस्सूर्यरूपेण सर्वान् व्यवहारान् प्रापयति तथैव विद्वान्त्सर्वान् कामान् प्रापयति ॥१॥
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MATA SAVITA JOSHI

या सूक्तात अग्नी, राजा, अध्यापक, शिकणाऱ्याच्या कर्माचे वर्णन करण्याने या सूक्ताच्या अर्थाची पूर्व सूक्तार्थाबरोबर संगती जाणावी.

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जसा अग्नी सूर्यरूपाने सर्व व्यवहारांना प्राप्त करवितो तसेच विद्वान संपूर्ण मनोरथांना प्राप्त करवितो. ॥ १ ॥